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भगवतीस्त्रे भदन्त ! कतिषु लेश्यासु भवति ? गौतम ! पढ्सु लेश्यासु भवति, तद्यथा-कृष्ण लेश्यायां यावत् शुक्ललेश्यायाम् । स खलु भदन्त ! कतिषु ज्ञानेषु भवति ? गौतम ! त्रिषु या, चतुषु वा भवति, त्रिषु भवन् आभिनियोधिकज्ञानश्रुतज्ञानावधिज्ञानेषु भवति, चतुर्पु भवन् आभिनिवोधिकज्ञान-श्रुतज्ञाना-वधिज्ञान-मनःपर्यवज्ञानेषु भवति । स खलु भदन्त ! किं सयोगी भवति, अयोगी भवति? एवं योगः, उपयोगः, और देखना है । ( से णं भंते ! कइ लेस्सासु होज्जा) हे भदन्त ! वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी मनुष्य कितनी लेश्याओं में होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी मनुष्य (छसु लेस्सासु होज्जा) छह लेश्याओं में होता है । (तं जहा) वे छह लेश्याएं इस प्रकार से हैं(कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए) कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । (से णं भंते ! कइसु नाणेसु होज्जा) हे भदन्त ! वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी कितने ज्ञानों में होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी मनुष्य (तिसु चउसु वा होज्जा) तीन ज्ञानों में या चार ज्ञानों में होता है। (तिसु होज्जमाणे आभिणिबोहियनाण, सुयनाण, ओहिनाणेसु होज्जा) यदि वह तीन ज्ञानों में होता है-वे ज्ञान हैं आभिनियोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान (चउस्सु होज्जमाणे आभिणियोहियनाण, सुयनाण, ओहिनाण, मणपज्जवणेसु हाज्जा) और वह यदि चार ज्ञानों में होता है तो वे चार ज्ञान हैं-आभिनियोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनः पर्ययज्ञान (से णं भंते ! किं सजोगी होज्जा
(से णं भंते ! कइलेस्सासु होज्जा ?) 3 महन्त ! ते श्रुत्वा अवधिज्ञानी भनुष्य सी श्यामापा जाय छ १ (गोयमा 1) गौतम (छसु लेस्सासु होज्जा-त जहा) ते नीय प्रभानी छो छ सश्यामावाणी डाय छे. (कपहलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए) परश्याथी सधन शुसवेश्या पय-तनी ६ श्याम અહીં ગ્રહણ કરવી.
(से णं भंते ! कइसु नाणेसु होज्जा १) BRed! ते श्रुत्वा अपधिज्ञानी मां ज्ञानाथी युद्धत खाय छ १ (गोयमा ! तिसु चउसु वा होज्जा) 3 गौतम ! ते त्र ज्ञानाथी अथवा या ज्ञानाथी युत डाय छे. (तिसु होज्जमाणे आभिणिबोहियनाण, सुयनाण, ओहिनाणेसु होजा) त्या भवधिज्ञानी ત્રણ જ્ઞાનવાળે હોય છે, તે તે આભિનિબંધિક જ્ઞાન, શ્રવજ્ઞાન અને અવધિज्ञानयी युत हाय छे. ( चउसु होज्जमाणे आभिणिबोहियनाण, सुयनाण, ओहिनाण, मणपज्जवनाणेसु होजा ) 'पY न त यार ज्ञानपाणी डाय छ, aa આભિનિબંધિક જ્ઞાન, શ્રતજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન અને મન:પર્યવ જ્ઞાનથી યુક્ત હોય