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trafar der ० ८ उ १० सू० १ शीलश्रुतादिनिरूपणम्
કંપ
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वच्मि, यावत् भाषे, प्रज्ञापयामि, प्ररूपयामि, तत्रैव युक्तिमाह - ' एवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, ' हे गौतम! एवं खलु वक्ष्यमाणरीत्या मया चत्वारः पुरुषजाता:- पुरुपप्रकाराः प्रज्ञप्ताः, तानेवाह - ' तं जहा - सीलसंपन्ने णामं एगे, जो सुसंपन्ने ? ' तद्यथा - एकः खलु पुरुषः शीलसम्पन्नो नाम भवति नो श्रुतसम्पन्न भवति १, 'सुयसंपन्ने णामं एगे, नो सीलसंपन्ने २ ' एकोऽपरः खलु पुरुषः श्रुतसम्पन्नो नाम भवति, नो शीलसम्पन्नो भवति २ ' एगे सीलसंपन्ने वि, यसंपन्ने वि ३ ' एकोऽन्यः पुनः पुरुषः शीलसम्पन्नोऽपि भवति, श्रुतसम्पन्नोऽपि भवति ३, 'एगे णो सीलसंपन्ने, णो सुयसंपन्ने ४ ' एकः स्वलु चतुर्थः पुरुषः नो शीलसम्पन्नो भवति, नो श्रुतसम्पन्नो वा भवति ४, ' तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए, से णं पुरिसे सीलवं असुयवं, उवरए, अविन्नाययम्मे ' है वह मिथ्या है - इस में युक्ति को प्रदर्शित करने के निमित्त प्रभु कहते हैं - ( एवं खलु मए चत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता ) हे गौतम! मेरे द्वारा इस विषय में चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं ( तं जहा ) जो इस प्रकार से हैं - ( सील संपन्ने णामं एगे जो सुय संपन्ने १, ) उन पुरुषों में एक प्रकार ऐसा है जो शीलसंपन्न तो होता है पर श्रुत संपन्न नहीं होता है | ( सुसंपन्ने णामं एगे, नो मीलसंपन्ने २ ) दूसरा प्रकार ऐसा है जो श्रुतसंपन्न होता है, शीलसंपन्न नहीं होता है । (एगे सीलसंपन्ने वि, सुसंपन्ने वि ) तीसरा प्रकार ऐसा है जो शीलसंपन्न भी होता है और श्रुतसंपन्न भी होता है। (एगे णो सीलसंपन्ने, णो सुय संपन्ने ) तथा चौथा प्रकार ऐसा है जो न शीलसपन्न होता है और न श्रुतसंपन्न होता है। (तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलबं પરસિદ્ધાન્તાનું ખડન કરીને સ્વસિદ્ધાતનું પ્રતિપાદન કરવા માટે નીચેનાં દૃષ્ટાન્ત माये छे-( एवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता - तं जहा - ) हे गौतम ! આ વિષયનું પ્રતિપાદન કરવા માટે નીચેના ચાર પ્રકારના પુરુષોની મારા દ્વારા अयथा वामां भावी छे " सीलसंपन्ने णामं एगे, णो सुयसपन्ने १, " ते ચાર પ્રકારના પુરુષમાંથી એક પ્રકાર એવા હાય છે કે જે શીલસ’પન્ન તે હાય છે પણ શ્રુતસંપન્ન હેાતા નથી, यस पन्ने णामं एगे, नो सील सौंपन्ने " બીજો પ્રકાર એવા હાય છે કે જે શ્રુતસ`પન્ન હૈાય છે પણ नथी. ( एगे सीलस पन्ने वि, सुयस पन्ने वि) श्रीले अक्षर ? शीदास पत्र या होय हे मने श्रुतस यन्न याशु होय हे सपन्ने णो सुयस पन्ने ) तथा थोथो प्रहार सेवा हाय है ? शीसस पन्न याथु होतो नथी मते श्रुतसंपन्न य होतो नथी. ( तत्यणं जे से पढमे पुरिस
શીલસ પન્ન હાતા सेवा होय छे
( एगे जो सील•