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प्रमैयन्द्रिका टी००८७०९सू०१० मौदारिकादिघन्धस्य परम्परसम्बन्धनि०४२१
टीका-'जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरस्स सध्यबंधे, से णं भंते ! बेउ. बियसरीरस्स किं बंधए, अवंधए ? ' हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य औदारिकशरीरवन्धः सर्ववन्धरूपो वर्तते, हे भदन्त ! स खलु औदारिकशरीरसर्वबन्धको जीवः कि क्रियशरीरस्य बन्धको भवति ? अवन्धको वा भवति ? भगवानाह-'गोयमा! 'नो वधए, अवंधए' हे गौतम ! औदारिकशरीरसर्ववन्धको जीवः नो वैक्रियशरीया अबंधक होता है ? (जहा तेयगरस बत्तव्यया भणिया. तहा कम्मगस्म वि भाणियव्वा, जाव तेयासरीरस्स जाव देमधए नो सव्ययधए ) हे गौतम ! जैसी वक्तव्यता तैजस शरीर की कही गई हैउसी तरह की वक्तव्यता कार्मणशरीर की भी कहनी चाहिये। यावत् वह तैजसशरीर का देशबंधक होता है, सबंधक नहीं।
टीकार्थ- इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने औदारिक आदि शरीरों का परस्पर में संबंध प्ररूपित किया है। इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-(जस्स णं भंते ! ओरालिय सरीरस्त सव्वयंधे, से णं भंते ! वेउ. विय सरीरस्स किं वधए अबंधए) हे भदन्त ! जिस जीव के औदारिक शरीर का सर्वधरूप होता है, वह जीव क्या वैक्रियशरीर का वधक होता है या अवन्धक होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम! (नो बंधए अवंधए) औदारिक शरीर का सर्वबंधक जीव
डाय छ, मम डाय छ? ( जहा तेयगस्स वत्तव्यया भणिया. तहा कम्म गस्त वि भाणियधा, जाव तेयासरीरस्स जाव देसबधए नो सवधत) ગૌતમ ! તૈજસ શરીરનું જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન કાર્પણ શરીરના વિષયમાં પણ કરવું જોઈએ “કાશ્મણ શરીરને દેશબંધક જીવ તૈજસ શરીરને દેશબંધક જ હોય છે, સર્વ બંધક હોતું નથી.” ત્યાં સુધીનું પૂર્વોક્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવાનું છે
ટીકાર્ય–આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે ઔદારિક આદિ શરીરના પરસ્પરના સંબંધની પ્રરૂપણ કરી છે. આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર प्रभुने यो प्रश्न पूछे छ8-" जस्स ण मते ! ओरालिय सरीरम्स सञ्चय धे, से ण भंते | वे उत्रिय सरीरस्स किंवधर, अवधए ?" महन्त !
ઔદારિક શરીરને સર્વબંધ કર્યો હોય છે, તે જીવ શું વૈકિય શરીરનો બાધક હેય છે, કે અખંધક હોય છે?
महावीर प्रभुना उत्त२-" गोयमा!" हे गौतम ! मोहार शरीरको समयः ७१ “नो घंधए, अन्नधए " यि शरीरमा मध खाता नयी,