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प्रमैववन्द्रिका टी० ० उ० ९ ० ९ कामणशरीरप्रयोगवन्धवर्णनम् ३९५ स्वमिथ्यात्वतया, 'तिब्वचारित्तमोहणिज्जयाए, मोहणिज्जकम्मासरीर-जाव पओगबंधे' तीव्रचारित्रमोहनीयतया कषायचारित्रमोहनीयभिन्नेन नोकपायशक्षणचारित्रमोहनीयेनेत्यर्थः मोहनीयकार्मणशरीर यावत् प्रयोगनामकर्मण उदयेन मोहनीयकामणशरीरमयोगवन्धो भवतीति भावः, गौतमः पृच्छति-' नेरइयाउयमोह से, अत्यन्तलोभ से, तीब्रदर्शनमोहनीय से,-अत्यन्तमिथ्यात्व से, (तिव्वचारित्तमोहणिज्जयाए) तीव्रचारित्रमोहनीय से, जीव के (मोहणिज्जकम्मासरीर जाव पओगवंधे) मोहनीयकार्मणशरीरप्रयोग नामक कर्म के उदय से मोहनीयकामणशरीरप्रयोग का बंध होता है। यहाँ (तिब्वचारित्तमोहणिज्जाए ) इस पाठ से तीव्रचारित्रमोहनीयरूप जो कषाय मोहनीय है उससे भिन्न नो कषाय रूप चारित्रमोहनीय ग्रहण किया गया है । तात्पर्य कहने का यह है कि चारित्रमोहनीय कर्म के कषायचारित्रमोहनीय और अकषायचारित्रमोहनीय इस तरह से दो भेद हैं। इनमें से प्रथम भेद का कथन तो सूत्रकार ने (तिब्वकोहाए) आदि पदों द्वारा प्रकट ही कर दिया है। अब रहा अकषायचारित्रमोहनीय (तिव्वचारित्तमोहणिज्जाए) इस पद द्वारा उसका भी कथन कर दिया गया है। इस तरह तीव्रक्रोधादिक से, तीव्रमिथ्यात्व से और -अकषायचारित्रमोहनीय से एवं मोहनीयकामण शरीरप्रयोगरूप कर्म के उदय से इस जीव के मोहनीयकामगशरीरप्रयोग का वध होता है। भाडनीयथी ( अत्यन्त भिथ्यात्तथी), ( तिव्वचारित्तमोहणिज्जयाए ) तीन यात्रि भाडनीयथी मने (मोहणिज्न कम्मा सरीर जावप्पओगधे ) मोडनीय अभी શરીર પ્રયોગ નામક કર્મના ઉદયથી જીવ મેહનીય કાર્પણ શરીર પ્રયોગને
५ ४३ छ. मही " तिव्वचारित्तमोहणिज्जाए " तीन सारित्र भाडनीय३५ કષાય મોહનીય છે તેના કરતાં ભિન્ન નેકષાયરૂ૫ ચારિત્ર મેહનીય પ્રહણ કરવામાં આવેલ છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે ચારિત્ર મેહનીયના કષાય ચારિત્ર મહનીય અને અકષાય ચારિત્ર મોહનીય, આ બે ભેદ છે. તેમાંના पडसा सेर्नु थन तो सूत्रारे “तिव्वकोहाए" माहिपही द्वारा प्रट ४ी हीधु छे. हवे २धु भवाय यात्रि मोडनीय. “ तिम्वचारित मोहणिज्जाए" આ પદ દ્વારા તેનું કથન પણ કરવામાં આવ્યું છે.
આ રીતે તીવ્ર ક્રોધાદિકથી, તીવ્ર મિથ્યાત્વથી અને અકષાય ચારિત્ર મેહનીયથી અને મોહનીય કાર્મણ શરીર પ્રયાગરૂપ કર્મના ઉદયથી આ જીવ મેહનીય કાર્મણ શરીર પ્રગને બંધ કરે છે.