________________
भगवतीसूबे
३९२
1
णीयहेतुत्वेन दर्शनावरणीय स्वरूपं यत्कार्मणशरीरमयोगनाम तस्य कर्मण उदयेन या दर्शनावरणीयकार्मणशरीरयोगवन्भो भवति । गौतमः पृच्छति - 'सायावेयणिज्जकम्पासरीरप्पओगवधे णं भने ! कस्स कम्मस्स उदएणं ?' हे भदन्त ! सातावेदनीय काम शरीरमयोगवन्धः खलु कस्य कर्मण उदयेन भवति ? भगवानाह - ' गोयमा पाणाणुकंपयाए, भूयाणुकंपयाए एवं जहा सत्तमसए दसमोtee जाव अपरियावणयाए ' हे गौतम ! माणानुकम्पया, भूतानुकम्पया, एवं रीत्या यथा सप्तमशतके दामोद्देश के दुष्पमायाः पष्ठोद्देशके यावत् जीवानुकम्पया, सन्त्वानुकम्पया, बहूनां प्राणानां भूतानां जीवानां, सच्चानाम् अदुःखनतया, अशोचन्तया, अजूरणतया, अपनतया, अनितया, अपरितापनतया 'सायाकम्मस्स उदपणं जावप्पओगबंधे) इस सूत्र द्वारा प्रकट किया गया है। ( जावपओगव घे) ऐसा जो पाठ रखा है-उससे ( दर्शनावरणीयकार्मणशीर ) इतना पात्र ग्रहण किया गया है ।
अव गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-सायावेय णिज्जकम्मासरीरबंधे भते । कस्स कम्सस्स उद्रणं) हे भदन्त । सातावेदनीय कार्मणशरीरप्रयोगव ध किस कर्म के उदय से होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - (गोधना ) हे गौतम! (पाणाणुकंपयाए, भूयाणुकंपयाए, एवं जहा सत्तममए दुमलोद्देमए जाव आपरियावणयाए) प्राणानुकंपा से प्राणियों के ऊपर दया रखने से भूनों के ऊपर दया रखने से, जैमा सप्तमशनक के दुःपम नामक छठे उद्देशक में कहा है- " जीवानुकंपया, सानुकं पया, बहूनां प्राणानां भूनानां जीवानां, सत्त्वानाम्, अदुःखनतया, अशोचन्तया, अजूरणतया, अलेपननया, अपिटुनतया, अपरितापनतथा यह पाठ कहा गया है - इस रीति के जीवादिकों के ऊपर अनु
25
जावप ओग घे" पदभा
जीव " यह भूवामां आव्युं छे. तेना द्वारा " दर्शनावरणीय कार्मण शरीर " भाटखेो पाठ ग्रह अश्वामां आव्यो छे. गौतम स्वाभीने प्रश्न - ( सायांवेणिज्ज कम्मा सरीरप्पओग बघे ण भंते ! कस्स कम्मर उदरण ? डे लहन्त ! सातावेदनीय अभय शरीर प्रयोगमध કયા કર્મીના ઉદયથી થાય છે ?
भई वीर प्रभुने। उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम! ( पाणाणुकंपयाए, भूगाणुकंपयाए, एवं जहा सत्तमसर दुसमोद्देसए जान अपरियावणयाए ) प्रथाકપાથી એટલે કે પ્રાણીએ ઉપર અનુકંપા રાખવાથી, ભૂતા ( વનસ્પતિકાયિકા ) ઉપર દયા રાખવાથી અને સાતમાં શતકના દુઃખમ નામના છઠ્ઠા ઉદ્દેશકમાં
"