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प्रमेयन्द्रिका टीका श०८ ० ९ सू०५ चैयिकशरीरप्रयोगन्धवर्णन २९३ गौतम ! सर्वबन्धान्तरं जघन्येन एक समयम् , उत्कर्षेण अनन्तं कालम् अनन्ता यावत् आवलिकाया असंख्येयभागः, एवं देशवन्धान्तरमपि । वायुकायिक क्रियः शरीरपृच्छा, गौतम ! सर्ववन्धान्तर जघन्येन अन्तर्मुहर्तम् , उत्कर्षेण पल्योपमस्य असंख्येयमागम् , एवं देशवन्धान्तरमपि, तियग्योनिकपञ्चन्द्रिय क्रियशरीरप्रयोगप्रयोगव ध का अन्तर काल की अपेक्षा कितना है ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्यवंधतरं जहण्णेणं एक्कं समयं उक्दोलेणं अणंतं कालं अणंताओ जाव आवलियाए असंखेज्ज्ञह भागो-एवं देसवधतरेवि) पैक्रियशरीर के प्रयोग का सर्वबंधान्तर जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से अनंतकाल-अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी यावत् आवलिका के असंख्यातवें भागके समयतुल्य-असंख्यपुद्गलपरावर्तनका होता है। इसी तरहसे देशवन्धान्तर भी जानना चाहिये। (वाउकाइयवेववियसरीरपुच्छा) हे भदन्त ! वायुकायिकके वैक्रिय शरीर के प्रयोगांधका अन्तरकालकी अपेक्षा कितना है ? (गोयमा) हे गौतम ! (लव्यवंधतरं जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवनस्स असंखेजइ भागं, एवं देसवंधतरे वि) वायुकायिक वैक्रिय शरीर प्रयोग के सर्वबन्ध का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट से पल्योपम का असंख्यातवां भाग प्रमाण है। इसी तरह से देशबंध का अंतर भी जानना चाहिये । (तिरिक्ख जोणिय पंचिंदियवेउब्वियसरीरप्पओगबंधंतरं पुच्छा) हे भदन्त !
पैठियशसना प्रयास धनुं मतअनी अपेक्षा जाय छ १ (गोयमा! ॐ गौतम । ( सव्ववधतर जहण्णेण एक्क' समय, उक्कोसेणं अणतकालं, अणंताओ जाव आवलियाए असखेज्जइ भागो-एव देसबघतरे वि) वैठियशરીરના પ્રયોગનું સર્વબધાન્તર ઓછામાં ઓછું એક સમયનુ અને વધારેમાં વધારે અનંતકાળ-અનંત ઉત્સર્પિણ અવસર્પિણ યાવત્ આવલિકાના અસં.
ખ્યાતમાં ભાગના સમય બરાબર–અસંખ્ય પુદગલ પરાવર્તનનું હોય છે. એ જ प्रमाणे देश ५'धान्त२ ५५ सभा. ( वाउक्काय वेउव्विय सरीरपुच्छा ) है ભદન્ત ! વાયુકાયિકના વક્રિયશરીરના પ્રગબંધનું અંતર કાળની અપેક્ષાએ
छ १ ( गोयमा !) गीतम! (सवबधंतर जहण्णे .णं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्य असंखेज्जइ भाग, एवं देसबधंतरे वि) पायुयि डि. યશરીર પ્રગબંધના સર્વબંધનું જઘન્ય અંતર એક અન્તરમું હૃર્તાનું અને ઉત્કૃષ્ટ અંતર પાપમના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ છે. એ જ પ્રમાણે દેશम धनुं मत२ ५४ समन (तिरिक्खजोणिय पचि दिय वेउब्वियसरीरप्पओ.