________________
=
प्रमेयचन्द्रिको श० टी० श०८' उ०९ सू०५ वैयिकप्रयोगवन्धवर्णनम् २९५ गौतम ! सर्वचन्धः एक समयम् , देशबन्धो जघन्येन दशवर्षसहस्राणि त्रिसमयोनानि, उत्कृष्टेन सागरोपमं समयोनम् , एवं यावत् अधःसप्तमी, नवरं देशवन्धो या यस्य जघन्यिका स्थितिः सा त्रिसमयोना कर्तव्या, यस्य या उत्कर्षा सा समयोना, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां मनुष्याणां च, यथा वायुकायिकानाम् । असुरकुमारनागकुमार यावत् अनुत्तरौपपातिकानां यथा नैरयिकाणाम् , नवरं यस्य या स्थितिः सा भणितव्या, यावत् अनुत्तरौपपातिकानां सर्वत्रन्धः एकं समयम् , देशबन्धो सेणं अंतोमुहत्तं ) वायुकायिक एकेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोग का सर्वयंध एक समयतक और देशबंध जघन्य से एक समयतक तथा उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त तक होता है। (रयणप्पभापुढविनेरइय पुच्छा ) हे भदन्त ! रत्नप्रभापृथिवी के नरयिकों के क्रियशरीरप्रयोगबंध काल की अपेक्षा कवतक होता है ? (गोयमा-सन्वरधे एक्कं समयं. देसबंधे जहण्णेणं दसवाससहस्साई तिसमयऊणाई) हे गौतम ! इनके शरीरप्रयोग का सर्वबंध एक समयतक होता है। देशवध जघन्य से सीन समय कम दशहजार वर्षतक होता है। और (उकोसेणं) उत्कृष्ट से (सागरोवर्म समयऊणं-एवं जाव अहेसत्तमा नवर देसबंधे जस्स जा जहणिया ठिई, सा तिसमयऊणा कायव्वा, जस्स सा उक्कोसा सा समयऊणा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण मणुस्साण य जहा वाउझाइयाणं असुरकुमार नागकुमार जाव अणुत्तरोववाइयाणं जहा नेरयाणं, नवरं जा एक समय उक्कोसेण अंतोमुत्तं ) वायुायिसन्द्रिय वैठिय शरीर प्रयोगना સર્વબંધ એક સમય સુધી અને દેશબંધ ઓછામાં ઓછા એક સમય સુધીને અને વધારેમાં વધારે અન્તર્મુહૂર્ત સુધી હોય છે.
(रयणप्पभा पुढवि नेरइय पुच्छा ) 3 महन्त ! २त्नमा पृथ्वीना ना२. अन वैठियशरीरप्रयोगम' नी अपेक्षा या सुधी रहे छ ? ( गोयमा ! सव्वब घे एक समयं, देसव'धे जहण्णेण दसवाससहस्साई तिसमयऊणाइ) 3 ગૌતમ! તેમના વૈકિયશરીરપ્રાગ સર્વબ એક સમય સુધી હોય છે. દેશબંધને જઘન્ય કાળ દસ હજાર વર્ષ પ્રમાણ કાળ કરતાં ત્રણ ન્યૂન સમય पय-तन डाय छे, मन (उकोसेण) देशमधन क्यारेमा थारे १५ ( सागरोवमं समयऊण) सागरे।५भ प्रभात ॥ ४२तां में न्यून समय सुधीन डाय छे. (एवं जाव अहे सत्तमा-नवर' देखब घे जस्स जा जहणिया ठिई, सा तिसमयऊगा कायवा-जस्स सा उकोसा सा समयऊणा, पचि दियतिरिक्खमोणियाण मणुस्साण य जहा वाउम्काइयाण, असुरकुमार नागकुमार जान