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भगवती साक्षादेव तामाह-यावत् मनुष्याणामित्यादि, तथा च यावत्करणात् वायुनां पञ्चे. न्द्रियतिरश्वां मनुष्याणां च देशवन्धो जघन्येन एक समयं भवति, उत्कृष्टेन वायूनां त्रीणि वर्षसहस्राणि, पञ्चेन्द्रियतिरश्चां मनुष्याणां च सर्वबन्धसमयोनानि त्रीणिपल्योपमानि देशवन्धो भवतीति भावः, उक्तरीत्या औदारिकशरीरप्रयोगवन्धस्य कालं प्ररूप्य अथ तस्यैवान्तरं प्ररूपयितुमाह-"ओरालियसरीरप्पओगधंतरे णं भंते | कालओ केवच्चिरं होइ ?' गौतमः पृच्छति हे भदन्त ! औदारिकशरीरमयोगकथन से मनुष्यों के औदारिक शरीर के देशबंध की स्थिति लभ्य हो जाती है फिर भी जो सूत्रकार ने उसे "यावत् मनुष्याणाम्" ऐसा कहकर प्रकट किया है उसका कारण उनका अन्तिम कथन है। यहां "यावत" पद से यही प्रकट की गई है कि वायुकायिकों के, पंचेन्द्रियतिर्यश्चों के
और मनुष्यों के औदारिक शरीर का देशबंध जघन्य से एक समय तक होता है और उत्कृष्ट से वह वायुकायिक जीवों के एक समयकम तीन हजार वर्षतक और पंचेन्द्रियतिथंचों के तथा मनुष्यों के एक समयकम तीनपल्योपमतक होता है। उक्तरीति से औदारिक शरीरप्रयोगबंध के काल की प्ररूपणा करके अब सूत्रकार उसके अन्तर की प्ररूपणा करते हैं-(ओरालिय सरीरप्पओगबंधंतरे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ) इसमें गौतम प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं कि हे भदंत ! औदारिक शरीरप्रयोगबंध का अंतर काल की अपेक्षा कितने कालतक रहता है ? अंतर
ઔદ રિક શરીરના દેશબંધની સ્થિતિ પ્રકટ થઈ જાય છે, છતાં પણ સૂત્રકારે तर “ यावत् मनुष्याणोम् " २मा प्रमाणे ४डीने ५४८ ४२री छे, तेनुं १२५ तमनु मतिम ४थन छे. मी “ यावत् ” ५४थी मे पात प्रट ४२वामी આવી છે કે વાયુકાયિકે, પંચેન્દ્રિય તિર્ય ચે અને મનુષ્યોના ઔદારિક શરીરના દેશબંધને કાળ જઘન્યની અપેક્ષાએ એક સમયનો હોય છે, અને ઉત્કઃ બ્દની અપેક્ષાએ તે વાયુકાયિક જીવમાં ૩૦૦૦ વર્ષ કરતાં એક ઓછા સમયને અને પચેન્દ્રિય તિર્યંચે તથા મનુષ્યોમાં ત્રણ પૂલ્યપમ કરતાં એક ઓછા સમયને હેય છે. આ રીતે દારિક શરીર પ્રોગ બંધના કાળનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર તેના અંતરની પ્રરૂપણ કરે છે–
___ गौतम २वाभाना प्रश्न-“ ओरालियसरीरप्पओगबधतरे ण भंते ! कालओ केवच्चिर होइ ? ) 3 लत ! मोहरि शरीर प्रयोग मधर्नु भ'तर કાળની અપેક્ષાએ કેટલા કાળ સુધી રહે છે? “અંતર' એટલે વિરહકાલ.