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________________ २१३ % 3A प्रमेयचन्द्रिका टीका २० ८ उ. ९ सू ३ प्रयोगवन्धनिरूपणम् भाजनविशेषः, उपकरण नानाप्रकारकं तदन्योपकरणम् , अन्यत्सत्र स्पष्टम् । स चं देशसंहननवन्धः-' जहन्नेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं संसेज्जं कालं, मेत्तं देससाइणणावंधे ' जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्येण संख्येयं कालं तिष्ठति, स एप देशसंहननबन्धः प्रज्ञप्तः । गौतमः पृच्छति-से किं तं सव्यसाहणणावंधे ? ' हे भदन्त ! अथ का कस्तावत् स सर्वसंहननवन्धः प्रज्ञप्तः, भगवानाह-सव्व. साहणणावंधे से णं खीरोदगमाईणं, सेत्तं सबसाहणणावंधे, सेत्तं साहणणाय धे, सेतं अल्लियावणवंधे' हे गौतम । सर्वसंहननवन्धः स खलु क्षीरोदकादीनां सर्वेणसर्वस्य सनातीभवनलक्षणसंहननवन्धः सम्बन्धः सर्वसंहननवन्धः । स एप उपयुक्तः सर्वसंहननबन्धो बोध्यः, सः एप संहननवन्धः प्रज्ञप्तः, स एप उपयुक्तरीत्यो प्रतिकडुच्छय-करछली है। मिट्टी के पात्र का नाम भाण्ड है । भाजनविशेष का नाम अमत्र है-इसे भाषा में कुर्वा कहते हैं । तथा इनसे अतिरिक्त और भी जो उपकरण हैं-ये सब देश संहननबंध का समय रहने का (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं ) जघन्य ले अंतमुहर्त का है और उत्कृष्ट से संख्यात कालका है । इसके बाद यह बंध नष्ट हो जाता है। अघ गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(से किं तं सव्वसंहणणा बंधे ) हे भदन्त ! सर्व संहनन बंध क्या है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! (सवलाहणणा बंधे से णं खीरोदगमाईणं-से तं सव्व साहणणा वंधे) दूध और पानी में जो एकभावरूप बंध संबंध है वह सर्व संहनन बंध है। इसी तरह का सर्वसंहनन बंध और भी पदार्थों में होता है । इस प्रकार से यह सर्वसंहनन वध का स्वरूप है । इन दोनों ४ छ. भाटीन पात्रोन His ४९ छे. मने शस (यपणिया) २ (ममत्र) કહે છે. તથા આ સિવાયના બીજા પણ જે વિવિધ ઉપકરણો છે, તે દેશ सनन श्री युत हाय छ- देश सनन 'ध (जहण्णेणं अंतोमहुच उकोसेणं स खेज कालं) माछामा माछ। मतभुत सुधी भने बारेमा વધારે સંખ્યાતકાળ સુધી રહે છે ત્યાર બાદ તે બંધ નષ્ટ થઈ જાય છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-" से कि त सव्यसाहणणा वधे ? " महन्त ! સર્વ સંહનન બધનું સ્વરૂપ કેવું છે? मडावीर प्रमुनी उत्तर--" सबसाह्मणा वधे से ण खोरोदगमाईणं से त' सव्वसाहणणाव घे" ७ गौतम ! | मने पायाभर मे लाप રૂપ બંધ સંબધ છે, તે સર્વસંહનન બંધ છે. સર્વસંહનન બંધનું એવું સ્વરૂપ છે. સંહના બધા અને પ્રકારનું કથન પૂરું થવાથી સંહનન બંધનું
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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