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प्रमेयचन्द्रिका टीका ८ ० १ सू० ३ प्रयोगबन्धनिरूपणम्
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बन्धो यत् खलु अगड (अवट ) तडाग नदी हद वापी दीर्घिकाणां गुञ्जालिकानां सरसां सरः पङ्क्तिकानाम् सरःसरःपक्तिकानाम्, विलपक्तिकानाम्, देवकुलसभा - पर्व - स्तूप - खातिकानाम्, परिखाणाम्, प्राकाराट्टाळक - चरिकद्वार - गोपुर - तोरणानाम्, प्रासाद - गृह - शरण-लयनापणानाम्, शृङ्गाटक - त्रिकचतुष्क - चत्वर - चतुर्मुख - महापथादीनां सुधाकर्दमल लेपसमुच्चयेन वन्धः संख्यात कालतक रहता है । ( से तं उच्चयवधे ) यही उश्चय बंध का स्वरूप है । (से किं तं समुच्चयव धे) हे भदन्त ! समुच्चय वंधका क्या स्वरूप है ? (समुच्चयबंधे जं णं अगडतडाग नदी- दह वावी - पुक्खरिणी दीहिया गुंजालियाणं, सराणं, सरपंतियाणं, सरसरपंतियाणं, बिलपंतियाणं, देवकुल- सभापव्व - धूमखाइणं फरिहाणं पागाराहालगचरिय दार. गोपुरतोरणाणं, पासायघर सरणलेण आवणाणं, सिंघाडग तिय- चउक्क -चच्चर-चउम्मुह-महापहमाइणं छुहा- चिक्खिल्ल सिलेस समुच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ) हे गौतम! कुंओ, तालाब, नदी, द्रह, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सरोवर, सरोवरपङ्क्ति, सरःसर पक्ति, विलपक्ति, देवकुल सभा, प्याऊ, स्तूप, खाईयां परिघ, कोट, अटारियां, चरिक, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद, चर, शरण, बाजार, शृङ्गाटकमार्ग, त्रिकमार्ग, चतुष्कमार्ग, चत्वर, चतुर्मुखमार्ग, रेभां पधारे सभ्याताण सुधी रहे छे. ( से तं उच्चयव घे ) अभ्यय मंधनं એવુ' સ્વરૂપ છે.
( से किं तं समुच्चयत्र 'घे ? ) हे लहन्त ! सभुभ्यय धनुं ठेवु સ્વરૂપ છે?
( समुच्चय व वे ज' णं अगडतडागनदीदहवावी, पुक्खरिणी दीहियाणं देवकुल- सम गुंजालियाण, सराणं,, सरपंतियाणं, सरसरपंतियाणं, बिलपंतियाण, पत्र-यूम खाइयाणं फरिहाणं, पागाराट्टालगचरियदार गोपुरतोरणाणं पासायघर सिंगाडग-तिय- चउक्क-चच्चर - चउम्मुह - महापहमादीणं- छुहा
सरणलेणआवणाणं, - चिक्खिल्ल सिलेस समुच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ )
डे गौतम 1 वा, तणाव, नही, द्रड ( डूड), पाथी, पुण्डिरिणी, हार्धिा, शुभविअ, सरोवर; सरोवर पति, सरःसर पंडित ( महासरोवर श्रेणी ), मिस पंडित, देवस, सला, प्यारी ( वाडी ), स्तूप, माया, परिध, ओट, અટારીએ ( પ્રાસાદને ઊર્ધ્વ ભાગ ), ચિરકા (નગર અને દુર્ગીના મધ્યવર્તી भाग), द्वार, गोथुर (नगर द्वार), तोरणु, आसाह, घर, शरयु (स्थानविशेष), बेलु (गृह विशेष), मलर, श्रृंगार मार्ग, त्रिम् भार्ग चतुष्ठ भार्ग, अत्वर भार्ग,