________________
શૈલ
भगवती सूत्रे
"
श्लेषणावन्धः, अथ कः स उच्चयबन्धः ? उच्चयबन्धो यः खलु तृणराशीनां वा, काष्ठराशीनां वा, पत्रराशीनां वा, तुषराशीनां वा, वुसरासीनां वा, गोमयराशीनां वा, अत्रकरराशीनां वा, उच्चत्वेन बन्धः समुपपद्यते, जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्क संख्येयं कालम् स एष उच्चयवन्धः, अथ कः सः समुच्चयबन्धः ? समुच्चयप्रासादों का, काष्ठों का, चमडे का, घडों का, पटों का वस्त्रों का और टाईयों का चूना, कर्दम, वज्रलेप, लाक्षा, मोम इसके द्वारा परस्पर में जुड जाना होता है । (जहणणेणं अंतोमुहृत्तं, उक्को सेणं संखेज्जं कालं ) यह बंध जघन्य से अन्तर्मुहूततक और उत्कृष्ट से संख्यातकाल तक रहता है । (सेत्तं लेसणाव घे) यही इलेषणा बंध का स्वरूप है । ( से किं तं उच्च घे) हे भदन्त | उच्चयबंधका क्या स्वरूप है ? (उच्चयवधे जंणं तरासीण वा, कट्ठरासीण वा, पत्तरासीण वा, तुसरासीण वा, भुसरासीण वा, गोमयरासीण वा, अवगररासीण वा, उच्चतेणं बंधे समुप्पज्जइ ) तृणराशि का, काष्टराशि का, पत्रराशि का, तुषराशि का, भूसा की राशि का, गोबर के ढेर का कूडा के ढेर का जो उच्चपने से बंध होता है, वह उच्चयबंध है । ( जहण्गेगं अंतो मुद्दत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं ) यह बंध जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से
नडित भूमियोनु, स्तलेोनु, प्रसाहेोनु, अष्ठधेनु याभडानु, घडाओोनु, વસ્ત્રોનુ' અને ચટાઇએનુ' ચૂના, કીચડ, વજ્રલેપ, લાખ અને મીણુ દ્વારા परस्पर साथै भेडा भवानुं जने छे ( जहण्जेणं अतो मुद्दत्त' उक्कोसेण संखे• अकाल ) मा गंध छाम छ ४ अंतर्मुहूर्त सुधी मते वधारेभां पधारे सभ्यातमा सुधा रहे छे. ( से त लेसणाबधे ) येषाणा मंधनु આ પ્રકારનુ સ્વરૂપ છે.
( से किं तं उच्चयब'घै ? ) हे लहन्त ! उभ्यय बंधनु स्व३य उ छे १ ( उच्चयबघे जण तणरासीण वा, कटुरासीण वा, पत्तरासीण वा, तुसरासीण वा, भुसरासीण वा, गोमयरासीण वा, अवगररासीण वा, उच्चत्तेणं बघे समुत्पज्जइ ) वासना ढगलानी, अष्टना ढगलानी, पशुना ढगसानो, तुषना ढगसाना, लुसाना ( पराजना ) ढंगसानो, छाना ढगसानो, अथराना ढग. લાના જે ઊંચાઇની અપેક્ષાએ એટલે કે તે પદાર્થોના આપસમાં સંખ’ધરૂપ જે अध थाय छे, तेने उध्य मध उडे छे. ( जहणेणं अतोमुहुच, उक्कोसेणं सखेग्ज'कालं ) मा अध ओछामां सोछेो मे अन्तर्मुहूर्त सुधी ने बधा