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प्रो० ० ८ उ० ९ सू० २ विसावन्धनिरूपणम्
सादिक विसावन्धः खलु आदिना सहितः सादिलो यो सिन्धः स तथा, कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - ' गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते ' हे गौतम ! सादिक विस्रसाबन्धस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, ' तं जहा - चंधण पच्चइए, भायणपच्चइए, परिणाम पच्चइए ' तद्यथा-वन्यमत्ययिक, माजनप्रत्ययिका, परिणाममत्यविकख, तत्र वध्यतेऽनेनेति बन्धनं विवक्षित स्निग्धतादिको गुणः स एव प्रत्ययो हेतुर्यत्र सवन्धन प्रत्ययिक, एवं भाजनमाधारः प्रत्ययो यत्र स भाजनमत्ययिकः, तथैव परिणामो रूपान्तरमाप्तिः मयो यत्र स परिणाममत्यकिः इति भावः, गौतमः पृच्छति -
in | कवि से) हे भदन्त | सादिकविसावं कितने प्रकार का कहा गया है। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम! (तिविहे पण्णरो) सादिक विसावध तीन प्रकार का कहा गया है । ( तं जहा ) जो इस प्रकार से है - ( बंधणपच्चइए, भायणपच्चए परिणामपच्चइए) व वनप्रायिक, भाजन प्रत्ययिक और परिणामप्रत्ययिक (वध्यते अनेन इति बंधनं ) इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिसके द्वारा बांधा जाय वह बंधन है ऐसा बंधन विवक्षित स्निग्धता आदिगुण होता है । वही जिस बंध में हेतु होता है वह बंधनप्रत्यधिक सादिक विसाध है। भाजन नाम आधार का है। यह आधार जिस बंध में हेतु - कारण होता है यह भजनप्रत्यधिक सादिक विलसाबंध है | रूपांतर प्राप्ति का नाम परिणाम है। यह परिणामान्तरप्राप्ति जिस सादिक विस्रावंध में हेतु होती है वह परिणामप्रत्यधिक सादिक विसावध है । अव गौतम
गौतम स्वामीनी प्रश्न - ( साइय वीससा ब वे ण' भरते । कवि पण्णत्ते ? ) હું ભજ્જત ! સાદિક વિશ્વસા મધ કેટલા પ્રકારના કહ્યો છે ?
भडावीर प्रलुना उत्तर—“ गोयमा । " हे गौतमा ! " तिविहे पण्णत्ते जहा " साहि विस्सा मंधना नीचे प्रमाण अक्षर छे - ( बंधण पच्चइए भायणपच्चइए, परिणाम पच्चइए, ) (१) अधिन अत्यधिक लागन अत्यधिक सने (३) परिणाम अत्ययिङ.
( बध्यते अनेन इति वन्वनं ) मा व्युत्पत्ति प्रभा भेना द्वारा धવામાં આવે તે બધન છે, એવુ' બધન જેવુ... આગળ કરવામાં આવશે તે સ્નિગ્ધતા આદિ ગુણા છે. તે ગુણા જ જે બંધના કારણુરૂપ હાય છે, તે અધને અંધન પ્રત્યયિક સાકિ વિશ્વસા મધ કહે છે. ભાજન એટલે આધાર. આ આધાર જે મધમાં કારરૂપ હોય છે, તેને ભાજન પ્રત્યયિક સાદિક વિશંસા મધ કહે છે. પરિણામ એટલે રૂપાન્તર પ્રાપ્તિ તે પરિણામાતર