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प्रमेवचन्द्रिका टी० श० ८ उ० ८ सू० ६ सूर्यनिरूपणम्
१३७ सूर्यस्य व्यवहितत्वात् तथापि उदयास्तमनमनीत्यपेक्षया व्यवहितं मन्यते इति तत्र किं कारणमिति । प्रष्टुराशयः उक्त मेवाह-' अत्यमणाहुत्तसि दूरे य, मुले य दीसंति ?' अस्तमनमुहर्ते अस्तमनवेलायां दूरे व्यवहिते देशे च वर्तमानावपि सूर्यो मूले च आसन्ने निफटे हश्यते प्रतीयेते ज्ञायते इत्यर्थः, तत्र कि कारणमिति प्रश्नः, भगवानाह-हंता गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मूरिया उग्गमगाहुत्तसि दूरे य, त चेव जाव अस्थपणमुहुत्तमि दृरे य, मूले य दीसति' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् जम्बूद्वीपे खल द्वीपे-मध्यजम्बूद्वीपे सयौं उगमनमुहर्ने उदय काले 'दरे च । दर्शकस्थानापेक्षया व्यवहिते देशे च वर्तमानावपि नदेव पूर्वपक्षोक्तरीत्यैव यावत् दृष्टा उदय होने के समय में और अस्त होने के समय में हजारों योजन दूर सूर्य को देखता है पर उसे ऐसा लगता है कि य पास में है। मध्याह्न समय में सूर्य दृष्टा के स्थान की अपेक्षा पास में होता है-तब भी उसे सूर्य दूर है ऐसा लगता है। दृष्टा उद्य और अस्न समय की अपेक्षा मध्याह्न में सूर्य को पास में देखता है क्यों कि उस समय सूर्य आठसौ योजन के अन्तर पर होता है, पर उसे उदय और अस्त की अपेक्षा वह दूर मानता है-सो इसका क्या कारण है ? ऐसा प्रश्न करने वालों का आशय है-इसी उक्त बात को सूप्रकार ने (अत्थामण मुह संसि दूरे य, मूले य दीसंलि ) इस सूत्रपाठ द्वारा व्यक्त किया है कि अस्तकाल में सूर्य दूर रहता है-पर वह मूल-पास में दिखता है। सो इसमें क्या कारण है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(हता गोयमा) हां गौतम ! बात तो ऐसी ही है, कि (जंबु दीवे णं दीवे सूरिया उग्गસમીપમાં જ છે ઉદય અને અસ્તિકાળે હજારે જન દૂર રહેલા સૂર્યને આવે છે, ત્યારે તેને એ ભાસ થાય છે કે સૂર્ય પોતાની નજીકમાં જ છે. મધ્યાહ્ન સમયે દષ્ટાના સ્થાનની અપેક્ષાએ સૂર્ય નજીકમાં જ (૮૦૦ એજન દર) હોય છે, છતાં પણ તેને તે ડર હોવાને ભાસ થાય છે ખરી રીતે તા ઉદય અને અસ્તની અપેક્ષાએ મધ્યાહુનકાળે સૂર્ય વધારે નજીકમાં હોય છે, છતાં દેખનારને મધ્યાકાળે તે વધારે દૂર લાગે છે. તેનું કારણ જાણવાના भाशयथी २मा प्रश्न पूछामा सान्या छ, १ पातन सूत्रा “ अत्यमणमुहृत्तंसि दूरे य मुले य दीसंति " सूत्रद्वारा प्र४८ ४१ छ-मस्ताणे सूर्य દૂર હોય છે પણ નજીકમાં દેખાય છે તેનું કારણ શું છે?
तेन उत्त२ २॥पता महावीर प्रभु ४ छ-" हता, गोयमा ! " &l, गौतम ! ४ मने छ है (जबूद्दीवेणं दीवे सूरिया उगमणमुहृत्तंसि दूरेय