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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०८ उ०८ सू०४ सांपरायिककर्मचन्धनस्वरूपनिरूपणम् ८६ प्ररूपयितुमाह- तं भते ! किं इत्थी वधइ, पुरिसो बंधइ, तहेव जाव नोडत्थी नोरिस नोनपुंसओ वंधइ ? ' हे भदन्त । तत साम्परायिककर्म किं स्त्री बध्नाति ? किं वा पुरुपो बध्नाति ' तथैव ऐर्यापथिक कर्म बन्धवदेव यावत्-किं वा नपुंसको बध्नाति, किं वा स्त्रियः बध्नन्ति, पुरुषाः वध्नन्ति, नपु सकाः बध्नन्ति, अथवा नोस्त्रीनोपुरुपनो नपुंसको बध्नानि ? भगवानाह-'गोयमा ! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, जाव नपुंसगो वि बंधइ ' हे गौतम ! सांपरायिक कर्म स्त्री अपि बध्नाति, पुरुषोऽपि वध्नाति, यावत् नपुंसकोऽपि वध्नाति, स्त्रियोऽपि बध्नन्ति, पुरुषा अपि वध्नन्ति, नपुसका अपि बध्नन्ति, नोस्त्रीनोपुरुपनोनपुंसकोऽपि वध्नाति, इति भाव', 'अहवेएय अवगयवेयो य बंधइ ' अथवा हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है (तं भंते। किं इत्थी बंधह, पुरिसो बधइ, तहेव जाव नोइत्थी नोपुरिसो, नोनपुंसओ बधइ ) हे भदन्त !उस साम्परायिक कर्म को क्या स्त्री बांधती है ? या पुरुष बांधता है ? या तथैव-ऐपिथिक कर्मबन्ध की तरह ही यावत्-नपुंसक बांधता है ? या स्त्रियां बांधती हैं ? या पुरुष बांधते हैं ? नपुंसक बांधते हैं ? अथवा जो नो स्त्री नो पुरुष नो नपुंसक है वह बांधता है ? इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ) हे गौतम ! (इत्थी वि बंधह, पुरिसो वि बंधइ, जाव नपुंसगो वि बंधइ) साम्परायिक कर्म स्त्री भी बांधती है, पुरुष भी बांधता है यावत् नपुंसक भी बांधता है, स्त्रियां भी बांधती हैं, पुरुष भी बांधते हैं, और नपुसक भी बांधते हैं। तथा जो नो स्त्री नो पुरुष नो नपुंसक है वह भी बांधता है। (अहवा एए य अवगयवेओ य बधइ ) अथवा ये पूर्वोक्त स्त्री आदिक बांधते हैं, तथा जो पुरिसो बधइ, तहेव जाब नो इत्थी, नो पुरिसो, नो नपुंसओ बाधा ?" હે ભદન્ત ! આ સાંપરાયિક કર્મ શું સ્ત્રી બાધે છે, કે પુરુષ બાધે છે, કે નપુંસક બાંધે છે કે સ્ત્રીઓ બાંધે છે કે પુરુષ બાધે છે? કે નપુસકે બાંધે છે ? અથવા જે તે સ્ત્રી, ને પુરુષ કે ને નપુંસક હોય તે બાંધે છે ? महावीर प्रभुन। उत्त२-“गोयमा !" 3 गौतम ! " इत्थी वि बधइ, पुरिसो वि व वइ, जाव नपुसगो वि बंधइ" सां५२यि४ में स्त्री ५ माधे છે, પુરુષ પણ બાંધે છે, નપુસક પણ બાંધે છે, સ્ત્રીઓ પણ બાંધે છે, પુરુષે પણ બાંધે છે અને નપુંસકે પણ બાંધે છે. તથા ને સ્ત્રી ને પુરુષ અને न नस४ ५ ते म मा छे. (अहवा एए य अवगयवेओय बधइ) मया પૂર્વોક્ત સ્ત્રી આદિ જીવ પણ ખાધે છે અને વેદરહિત જીવ પણ તે કર્મ
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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