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पमेयचन्द्रिका टी. श.८ उ.६ मू०५ क्रियास्वरूपनिरूपणम्
७२१ अग्निः मायति ज्वलति ? भगवानाह-'गोयमा! नो अगारे झियाइ, नो कुड्डा झियाइ, जाव नो छाणे झियाइ, जोइझियाइ' हे गौतम ! नो अगारं गृहं ध्मायति ज्वलति, नो कुट्यानि भित्तयो ध्यायन्ति, ज्वलन्ति, यावत् नो कडनानि मायन्ति, नो धारणे ध्यायतः, नो वलहरणं ध्मायन्ति, नो बंशा ध्मायन्ति, नो चित्वराणि ध्मान्ति, नो छादन ध्मायति, अपितु ज्योतिः अग्निः ध्मायति ज्वलति ।। सू. ४ ॥
क्रियावक्तव्यतामूलम्- "जीवे णं भंते ! ओरालियासरीराओ कइ किरिए ? गोयमो! लिय तिकिरिए, सिय चउ किरिए, सिय पंच किरिए, सिय अकिरिए, नेरइए णं अंते ! ओरालियासरीराओ ककिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए. असुरकुमारे णं भंते ! ओरालियसरीराओ कइकिरिए ? एवं चेव, एवं जाव वेसाणिए नवरं अणुस्से जहा जीवे, जोवेणं भंते ! ओरालियसरीरेहितो कई करिए ? गायमा ! सिय तिकिरिए जोव सिय अकिरिए नेरयिएणं भंते ! ओरालियसरीरेहितो कइ किरिए । एवं एसो जहा पढमी दंडओ तहा इमो वि अपरिसेसो भाणियव्वो जाव वेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे, जीवाणं भंते ! ओरालिया सरीराओ कइकिरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया जाव सिय अकिरिया, नेरइया णं भंते! ओरालियया ज्योति- अग्नि जलती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- ' गोयमा । हे गौतम ! 'नो अगारं झियाइ, नो कुड्डा झियाइ, जाव नो छाणे झियाइ' न घर जलता है, न पीतें जलती हैं और न यावत् छान जलता है, किन्तु अग्नि जलती हैं ॥ मू० ४ ॥
महावीर प्रभुने। उत्तर- 'गोयमा ! हे गौतम! 'न अगारं झियाइ, नो कुड्डा झियाइ, जाव नो छाणे चियाइ' घर मग नया, a unती नथी, છાપરા પર્યન્તની કેઈપણ વસ્તુ મળતી નથી, પરંતુ અગ્નિ જ બળે છે ! સૂ ૪ .