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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.६ सु. ३ निग्रन्थाराधकतानिरूपणम् ६९१ आत्मना च पूर्वमेव स्थविराश्च कालं कुर्युः, स खल्ल भदन्त ! किम् आराधकः विराधकः ? गौतम ! आराधकः, नो विराधकः ३, स च संपस्थितः असं. प्राप्तः आत्मना च पूर्वमेव कालं कुर्यात, स खलु भदन्त ! किम् आराधकः, विराधकः ? गौतम ! आराधकः, नो विराधकः ४, सच संपस्थितः संप्राप्तः स्थविराश्च अमुखाः स्युः, स खलु भदन्त ! किम् आराधकः, विराधकः ? करेजा, से णं भंते ! कि आराहए विराहए) हे भदन्त ! स्थविरोकि पास जानेके लिये वहाँ से वह निर्ग्रन्थ चलदे और उसके पहुंचने के पहिले यदि वे स्थविरकाल कर जाते हैं तो क्या वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक है ? (गोयमा) हे गौतम ! (आराहए नो विराहए) वह निर्ग्रन्थ आराधक है विराधक नहीं । ( से य संपट्टिए असंपत्ते अप्पणाय पुच्चामेव काल करेज्जा-से णं अंते । कि आराहए विराहए ? हे भदन्त ! स्थविरों के पास प्रायश्चित्तादि लेने के निमित्त वहां से चला हुआ वह निर्गन्ध यदि स्थविरों के पास पहुँचने से पहिले ही काल कर जाता है तो क्या वह आरावक है था विराधक है ? (गोयमा ! आराहए नो विराहए) हे गौतम ! वह आराधक है विराधक नहीं । (से य संपट्टिए संपत्ते थेरा य असुहासिया से णं भंते ! किं आराहए विराहए) हे भदन्त ! वह निग्रन्थ स्थविरों के पास वहां से चले और उसके पहुँचते ही वे स्थविर यदि मूक हो जाते हैं तो वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक है ? (गोधमा) हेपाय, विराध हेवाय नही. (सेय संपढिए असंपत्ते अप्पणा य पुवामेव थेरा य काल करेज्जा, से णं भंते ! किं आराहए, विराहए ) हे महन्त ! स्थविश्नी પાસે જવાને તે નિર્ચ થ ઉપડે છે પણ તેમની પાસે પહોંચ્યા પહેલાં તે સ્થવિર કાળ કરી Mय छ, तो a निथने माराध वाय विराध ? (गोयमा !) गौतम ! (आराहए नो विराहए ) तने सारा4 वाय, विरा५४ नडवाय ( से य संपढिए असंपत्ते आप्पणाय पुब्बामेय काल करेजा - से णं भंते ! किं आराहए, विराइए ?) हे महत। स्थविशनी पासे प्रायश्चित A६ सपाने भाटे નીકળે તે નિગ્રંથ જે સ્થવિરેને પાસે પહોંચતા પહેલા કાળ કરી જાય, તો તેને આરાધક हेपाय विधा२४ १ (गोयमा ! आराहए नो विराहए ) गौतम! तेन. मारा १ पाय, विशेष वाय नहीं ( से य संपट्ठिए संपत्ते थेराय अमुहा सिया-सेणं भंते कि आराहए विराहए ? ) महत! ते नि स्थविशनी પાસે પહોચી જાય, પણ તે ત્યાં પહેચતાં જ સ્થવિર મૂક થઈ જાય, તો તેને આરાધક