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भगवती सूत्रे
पिण्डैः उपनिमन्त्रयेत् 'भो भिक्षो ! गृहाणेदं पिण्डन्नयमितिरीत्या कथयेत्
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एगं आउसो अपणा भुजाहि, दो थेराणं दलयाहि ' हे आयुष्मन ! एकं पिण्डस् आत्मना स्वयमेव भुङ्क्ष्व, अथ च द्वौ पिण्डौ स्थविराणां स्थविरेभ्यो देहि इति, ततः से य ते पडिग्गज्जा' च निर्ग्रन्थः श्रमणः नौ छौ स्थविरपिण्डौ प्रतिग्रहीयात्, थेरा य से अणुगवे सेयन्त्रा, सेसं तं चैव जाव परिद्वावेवेसिया' स्थविराश्च तस्य निग्रंथेः श्रमणस्य अनुगवेपयितव्याः स्युः स्थविरान् अन्वेपयेत् इत्यर्थः शेषं तचैव पूर्वोक्तानुसारमेव यावत् यदि नोचेत्र खल अनुगवेषयन् स्थविरान् पश्येत् तर्हि तौ द्वौ स्थविरपिण्डौ नो आत्मना स्वयं भुजीत, नो वा अन्येषाम् - अन्येभ्यो दद्यात् दापयेवा, किन्तु एकान्ते अनापते अचित्ते वहुमासु के स्थण्डिले प्रतिलेख्य, गृहस्थ तीन पिण्डों द्वारा उपनिमन्त्रित करता है - भो भिक्षो । इन तीन पिण्डों को तुम लो-इस तरह से कहता है - ' एगं आउसो ! अप्पणा भुजाहि, दो थेराणं दलयाहि' इनमें से एक तुम अपने आहार के उपयोग में लेना और दो पिण्ड विवक्षित स्थविरों के लिये देना तब 'से य ते पडिग्गहेज्जा' वह उस पिण्डद्वय को स्थविरों के दो पिण्डों को ले लेता है । 'थेराय से अणुगवेसे यव्वा' अब वह वहां से अपने स्थान पर आकर उन विवक्षित स्थविरों की गवेषणा करता है 'सेसं तं चैव जाव परिट्ठायव्वालिया' गवेषणा करता हुआ यदि वह उन्हें नहीं पाता है तो उन दो स्थविर पिण्डोंको वह निर्ग्रन्थ स्वयं अपने आहार में उपयुक्त न करे और न उन्हें विवक्षित साधुओं से अन्य और किसी को देवें न दिलवाने किन्तु एकान्त अनापात, अचित्त. बहुमासुक स्थण्डल में प्रतिलेखना और प्रमार्जना करके उन साधुओं के दो पिण्डोंको
भार्या वरीने मा प्रमाणे उपनिमंत्रकरे छे (आ प्रभाये छे) - एगं आउसो ! अप्पणा
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जाहि, दो थेराणं दलयाहि ' ' हे आयुष्मन् ! आभांथी मे पिंड तभे तभाश आहारना उपयोगर्भा खेले भने जोडीना में पिड समुह स्थविराने आपले' 'से य ते पडिग्गहेज्जा ' ते निर्थथ ते भन्ने थिडे (स्थविरोनै आायवा भाटेना ने थि31) पोताना પાત્રમાં લ′ લે છે थेराय से अणुगवेसेवा' त्यार माह पोताने स्थाने भावीने તે વિવક્ષિત સ્થવિરાની રાધ કરે છે. ' सेसं तं चेव जाव परिद्वावेयन्वा सिया' પણ જો તે સાધુઓના તેને પત્તો ન લાગે તે તેણે તે એ પિય પેતાના આહારના ઉપયાગમાં લેવા જોઇએ નહીં અને કાઈ ખીજાને પશુ આપવા જોઇએ નહી'; પરન્તુ તેણે એકાન્ત, નાપાત, અચિત્ત, બહુ પ્રાત્સુક સ્થાનની પ્રતિલેખના તથા પ્રમાના