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________________ ६४८ भगवती कल्प्यन्ते इमानि पञ्चदश कर्मादानानि स्वयं कर्तुंबा, कारयितुं वा कुर्वन्तं वा अन्यं न समनुज्ञापयितुम्, तद्यथा - १ - अङ्गारकर्म, २ वनकर्म, ३ शकटिकर्म, ४ भाटीकर्म, ५ स्फोटिकर्म ६ दन्तत्राणिज्यम्, ७ लाक्षावाणिज्यम्, ८ केश वाणिज्यम् ९ रसवाणिज्यम्, १० विषवाणिज्यम्, ११ यन्त्रपीडनकर्म, १२ निर्लाच्छनकर्म, १३ दवाग्निदापनता, १४ सरोहदतडागपरिशोपणता, १५ इमाई पन्नरसम्मादाणाई जयं करेत्तए वा कारवेत्तए वा करंतं वा अन्न न समणुजाणेत्तए) इस तरह के जब गोशालकके भावक भी इस प्रकार से धर्मको चाहते हैं तो फिर जो श्रमणोपासक - श्रावक हैं उनके विषय में तो क्या कहना, ये तो इन पन्द्रह १५ कर्माद्वानोंको स्वयं नहीं करते हैं, दुसरे से नहीं करवाते हैं और इन्हें करवानेवालेकी अनुमोदना भी नहीं करते हैं । (तंजहा) वे पन्द्रह प्रकारके कर्मादान ये हैं - ( इंगालकम्मे १, वणकम्मे २, साडीकम्मे ३, भाडीकस्मे ४, फोडीकम्मे ५, दंतवाणिज्जे ६, लक्खवाणिज्जे ७ केसवाणिज्जे ८, रसवाणिज्जे ९, विसवाणिज्जे १०, जंतपीलणकस्से ११, निल्लछणकम्से १२, दवग्गिदावणया १३, सरदहतलायपरिसोसणया १४, असईपोसणया) अंगारकर्म १, चनकर्म २, शकटकर्स ३, भाटकर्स ४, स्फोटककर्म ५, दन्तवाणिज्य ६, लाक्षावाणिज्य ७, केशवाणिज्य ८, रसवाणिज्य ९, विषवाणिज्य १०, यंत्र पीलनकर्म ११, १२, दावाग्निदान १३, सरोवर, द्रह एवं तालाब इनका शोषण १४, निर्ला छनकर्म ताव एवं इच्छंति, किमंग पुण जे इमे समणोवासगा भवंति, जेर्सि नो कप्पंति इमाई पन्नरसम्मादाणाई सयं करेत्तए वा, कारवेत्तए वा, करेतं वा अन न समजात्तए) मा अमरना गोशासना श्राव या प्रकारे धर्मने यानाश હાય છે, તે શ્રમણેાપાસક શ્રાવકની તે। વાત જ શી કરવી ? તેઓ તા ૧૫ પ્રકારન કર્માદાનાનુ પાતે સેવન કરતા નથી, અન્ય પાસે સેવન કરાવતા નથી અને તેમનુ સેવન ४२नारनी अनुभोहना ४२ता नथी. (तंजा) ते १५ प्रक्षरता उर्भाधान नीचे प्रमाणे ( इंगालकम्मे, वणकम्मे, साडीकम्मे, भाडिकम्मे, फोडीकम्मे, दतवाणिज्जे, लक्खवाणिज्जे, केसवाणिज्जे, रसवाणिज्जे, विसवाणिज्जे, जंतपीलणकम्मे, निल छणकम्मे, दवग्गिदावणया, सर दह तला य परिसोसणया, असई पोसणया ) (१) गारम्भ (२) वनर्भ ( 3 ) शटभ, (४) लाट अर्भ (4) रोटर्स (१) तवाशिन्य (७) लाभवादिन्न्य (८) देशवाशिन्य, (८) रसवाहिन्य, (१०) विषवाशिन्य, (११) यंत्र पीसनम्भ, (१२) निछिनम्म, (अगे छेहीने नाथवानु कोरे अभ). (13)
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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