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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ.४ मृ. १ कायिक्यादिक्रिया निरूपणम् ५७१ कायिकयादि वक्तव्यता
मूलम् - रायगिहे जाव एवं वयासी-कइ णं भंते! किरियाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा । पंच किरियाओ पण्णत्ताओतंजा - काइया, अहिगरणिया, एवं किरियापयं निरवसेसं भाणियव्वं जाव मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहिचाओ । सेवं भंते ! सेवं भंते! ति ॥ सू० १ ॥
छाया - राजगृहे यावत - एवम् अवादीत् कति खलु भदन्त ! क्रियाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! पञ्चक्रिया प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - कायिकी, अधिकरणिकी, एव क्रियापदं निरवशेषं मणिर्तव्यम्, यावत् मायाप्रत्ययिक्यः क्रियाः विशेषाधिकाः, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त । इति ।। सू० ९ ॥
कायिकी आदि वक्तव्यता
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'रायगिहे जाव एवं वयासी' इत्यादि
सूत्रार्थ - (राग जाव एवं व्यासी) राजगृहनगर में यावत् गौतमने ऐसा पूछा - ( क णं अंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! क्रियाएँ कितने प्रकारकी कही गई है ? (गोयमा) हे गौतम ! (पंच किरियाओ पण्णत्ताओ ) क्रियाएँ पाँच कही गई हैं (तंजहा) जो इस प्रकार से हैं । (काइया, अहिगरणिया, एवं किरियापदं निरवसेसं भाणियां जाव मायावतिया किरियाओ विसेसाहियाओ) कायिकी, आधिकरणिकीइस प्रकार यहां पर प्रज्ञापना सूत्रका क्रियापद यावत् मायाप्रत्ययिकी क्रिया विशेषाधिक है यहां तक कहना चाहिये । ( सेवं भंते ! सेव કાયકી આદિ ક્રિયાનું વિવેચન
रायगि जाव एवं वयासी ' ४त्याहि
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सुत्राथ - ( रायगि जान एवं ववासी) (भगृह नगरभां अलु पधार्या ', કથનથી શરૂ કરીને • ગૌતમે પ્રભુને આ પ્રમાણે પૂછ્યુ ત્યા સુધીનું સમસ્ત કથન महीं थडल्लु ४२वुं ( कइणं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ ? ) डे सहन्त ! डियागो डेटला अारनी गडी छे ? ( गोयमा ) हे गौतम! ( पंच किरियाओ पण्णत्ताओ ) प्रिया यांय अारनी ही है (तं जहा) ते पाथ अहारी नीचे प्रमाणे - (काइया, अहिणरणिया, एवं किरियापदं निरवसेसं भाणियत्वं जान मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ ) डायरी, साधिपुरणी', या उथनथी शत्रु पुरीने 'भायाप्रत्ययडिया विशेषाधि होय हे ' ત્યા સુધીનુ પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના ક્રિયાપદ્ઘ
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