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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. ३ सू. १ वृक्षविशेषनिरूपणम्
'तं जहा
गौतम ! एकास्थिकाः एक बीजवन्तो वृक्षाः अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, नियंत्रजgo एवं जहा पनवणार जाव फला वहुवीयगा' तद्यथा - निम्ब - आम्र जम्बू प्रभृतयः, एवं यथा प्रज्ञापनायाः प्रथमपदे प्रतिपादितं तथा अत्रापि प्रति पत्तव्यं तदवधिमाह - यावत् फलानि वहुवीजकानि इत्येतत्पर्यन्तमित्यर्थः, तथाचोक्त मज्ञापनायाम् -
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छाया-
'निवंबज बुकोसंबसाल अंकोल पीलु सल्लूया । सलइ सोइमालय उल पलासे करंजेय ' ॥१॥ निम्बाम्रजम्बू कोशाम्र साल अङ्कोल्ल पीलु सल्युकाः । कि मोचको मालुक कुलपलाशो करञ्जश्च ॥१॥ तथा से किं तं बहुवीयगार अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा -
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प्रकार के होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'एगट्टिया अणेगविहा पण्णत्ता' एक बीजवाले वृक्ष अनेक प्रकारके होते हैं- 'तंजहा' जैसे'निबंब जंधु. एवं जहा पनवणापए जाव फला बहु बीयगा' नीम, आम, जामुन, आदि वृक्ष प्रज्ञापनाके प्रथम पदमें जिस प्रकारके इनके सिवाय और भी वृक्षोंका प्रतिपादन किया गया है उन सबका यहां पर भी ग्रहण करलेना चाहिये । यह प्रकरण वहां का यहां पर 'जाव फला बहु बीचगा' यहाँ तक का ग्रहण किया गया है। प्रज्ञापना में भी कहा है 'निर्वचजंबु कोस व साल अंकोल्लपीलु सल्लूया ।
सल, मोह, माय बउल पलासे करंजेय ॥१॥
तथा - 'से किं तं बहुबीयगार अणेगविद्या पण्णत्ता' हे भदन्त ! वहु बीजवाले वृक्ष कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- ये अगविहा पण्णत्ता ' जीवाणा वृक्ष मने प्रारा होय छे 'तं' जहा ' नेवा ' निबंव जव, एवं जहा पन्नत्रणापए जानफला बहुवीयगा' सीमा, आगो, જા બુ આદિ વૃક્ષ પ્રજ્ઞાપનાના પ્રથમ પદમાં જે પ્રકારે આના સિવાયના ખીજાપણ વૃક્ષોનું પ્રતિપાદન કર્યાં છે તે સઘળાનુ અહીં પણ ગ્રહણ કરવું આ પ્રકરણ ત્યાંનુ અહી આ जाव फला वहुवीयगा ' त्या सुधीनु ग्रह ईश छे अज्ञापनामा य उ छे - ' निबंवजंबुको संव साल अंकोल्लपीलु सल्लूया
सल्ला, मोंयइ, मालुयं वउल पलासे करंजेय ' ॥ १ ॥
सीभडे, यांभो, ल जुडो, असम-वृक्ष विशेष, सात वृक्ष विशेष, म होटल वृक्ष विशेष, थीसुडो, सतु, सहझडी, भोय, भालु, मल, ४२४ मे साना तथा 'से किं तं बहुवीगार अगवा पण्णत्ता ' डे लहन्त । जीरवाणा वृक्ष डेटला प्रारना होय, छे,