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भगवतीमत्रे संख्यातजी वन्तो बोद्धव्या; इतिभावः स ख्यातजीववतउपसंहरम्नाह-सेत्तं' इत्यादि, तदेते उपर्युक्ता' वृक्षविशेषाः सख्येयजीविकाः स ख्यातजीववन्तो विज्ञेयाः गौतमः पृच्छति-से किं तं असंखेज्जजीविया' हे भदन्त ! तत्अथ किंते असंख्येयजीविकाः ? कति विधाः असंख्यातजीववन्तः ? इति प्रश्नः भगवानाह-असंखेज्जनीविया दुविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! अस ख्येयजीविकाः, अस ख्यातजीववन्तः द्विविधा प्रज्ञप्ताः 'तं जहा-एगढिया य, बहुठियाय,' तद्यथा-एकास्थिकाश्च, ववस्थिकाच, तत्र एकम् अस्थिकं बीज येषां फलमध्ये ते एकास्थिकाः एक बीजकाः बहूनि अस्थिनि बीजानि फलमध्ये येपां ते वहुवीजकाः-अनेकास्थिकाः, अनेकबीजवन्त इत्यर्थः, गौतमः पृच्छति-'से कि तं एगढ़िया?' हे भदन्त ! तत्० अथ किते एकाथिकाः ? कियत्प्रकाराः एकवीनवन्तः ? इति प्रश्नः, भगवानाह- एगठिया अणेगविहा पण्णत्ता' हे से तं स खेजजीविया' इसी तरहसे जो और भी वृक्ष इन वृक्षोंके समान हैं वे सब मरूयात जीववाले होते हैं ऐसा जानना चाहिये । इस तरह यहां तक संख्यात जीववाले वृक्षोंका वर्णन किया ।
अब गौतम स्वामी प्रभुले ऐसा पूछते हैं 'से किं तं असंखोजजीविया' है भदन्त ! असंख्यातजीववाले वृक्ष कितने प्रकार के होते हैं- इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'असंखेज्जजीनिया दुविहा पण्णत्ता' असंख्यात जीवचाले वृक्ष दो प्रकार के होते हैं- 'तंजहा' जैसे 'एगठियाय बहुष्टियाय' जिनमें एक ही बीज हो अर्थात् जिन वृक्षोंके फलमें एक ही बीज हो वे एकास्थिक वृक्ष हैं और जिनके फलमें अनेक बीज हो- वे बह अस्थिक वृक्ष हैं । अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसो पूछते हैं- 'लेकितं एगहिया' हे भदन्त ! जो वृक्ष एक बीज फलवाले होते हैं- वे कितने જેમ છે તે સઘળાં સખ્યાતૂ જીવવાળા હોય છે એમ જાણવું એવી જ રીતે અહીં સુધી सध्या वाणा वृक्षनु प न यु वे जीतम स्वामी प्रभुन पूछे छे है ‘से किं त असंखेज्जजीविया 'महन्त ! मस स्यात् ७१वाणा वृक्ष मा ४२ना छ तेना उत्तरभ प्रभु ? ' असंखेज्जजीविया दुविहा पण्णत्ता' असभ्यात वा वृक्षना में 1२ डाय छ. 'त जहा' ? ' एगट्ठियाय बहुट्ठियाय' नाम मे४०० બીજ હોય અર્થાત જે વૃક્ષોના ફળમા એકજ બીજ હોય તે એકાસ્થિક વૃક્ષ છે. અને જેના ફળમાં અનેક બીજ હોય તે બહુઅસ્થિક વૃક્ષ છે. હવે ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને से पूछे छे । ' से किं त एगट्ठिया' मगवान् । २ वृक्ष मे भी वाणु डाय छे. तेवा वृक्ष सा प्रा२ना हाय छे. तेना उत्तरमा प्रभु ४ 'एगठिया