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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ सू. १२ अष्टादशकालादिद्वारनिरूपणम् ५१३ जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा! सवत्थो वा मणपज्जवनाणपज्जव्वा, विभंगनाणपज्जवा अणंतगुणा, ओहिनाणपज्जवा अणंतगुणा, सुयअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, सुयनाणपज्जवो विसेसाहिया, मइअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, आभिणिवो हियनाणपज्जवा विसेसाहिया, केवलनाणपज्जवा अणंतगुणा, सेवं भंते ! सेवं भंते! ति ॥सू.१२॥ वोईओ उद्देसो समत्तो ॥ छाया- ज्ञानी खलु भदन्त ! 'ज्ञानी' इति कालतः किञ्चिरं भवति ? गौतम ! ज्ञानी द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा- सादिको वा अपर्यवसितः, सादिको वा सपर्य वसितः, नत्र खलु यः स सादिकः सपर्यवसितः, म जघन्येन अन्तमुहूर्तम्, उत्कृष्टेन षट्षष्टिं सागरोपमानि सातिरेकाणि, आभिनिवोधिज्ञानी अष्टादशकालादि द्वार वक्तव्यता'णाणो णं भंते ! इत्यादि । सूत्रार्थ- (णाणी णं भंते! णाणी त्ति कालओ केवचिरं होइ) हे भदन्त ! ज्ञानी ज्ञानीरूपसे कालकी अपेक्षा कितने समयतक रहता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (णाणी दुविहे पण्णत्ते) ज्ञानी दो प्रकार का कहा गया है । (त जहा) वह इस तरहसे है- (साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवलिए) सादि अपर्यवसित और सादि सपर्यवसित (तत्थ ण जे से साइए अपज्जवसिए, से जहन्नेणं अंतो मुहत्त, उक्कोसेणं छावहिं सागरोनमाइं साइरेगाइं) इनमें जो सादि सपर्यवसित ज्ञानी है, वह जघन्यसे अन्तर्मुहूर्ततक और उत्कृष्ट से कुछ ( અઢાર પ્રકારના કાળનું નિરૂપણ 'णाणी णं भंते !' त्या साथ:-'णाणी णं भंते ! 'णाणी त्ति कालओ केवचिरं होइ'हमवान् । जानी ज्ञाना३५थी भजनी अपेक्षा से समय २९ छ ? 'गोयमा' गौतम ! 'णाणी दुविहे पण्णत्ते' जाताना १२ 'तं जहा' मा छ 'साइए वा अपज्जवसिए साइए वा सपजवसिए' सा A५ वसित मने सास५ सित 'तत्थ णं जे से साइए सजसिए, से जहन्नेणं अतो मुहुत्तं, उकोसेणं छावहि सागारोवाइ साइरेगाई' ते पै४ाना रे सा सपपसित ज्ञानी ते
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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