________________
४९०
भगवतीमुत्रे
केवलज्ञानस्य खलु भदन्त ! कियान् विषयः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! स समामतचतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः द्रव्यतः खलु
-
ज्ञान सर्वद्रव्याणि जानाति, पश्यति, एवं यावत् भावत । मत्यज्ञानस्य खलु भदन्त ! क्यिान विषयः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! स समासतश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, द्रव्यतः खलु मत्यज्ञानी मत्यपरसिए जहा नंदीए जाव भावओ) द्रव्यकी अपेक्षा ऋजुमति मनः पर्यव ज्ञानी मनरूप से परिणत अनन्तप्रदेशी अनन्त स्कन्धोंको जैसा कि नंदी सूत्र में कहा गया है यावत् भावतक जानता है और देखता है। (केवल नाणस्स णं भंते ! केवइए विमए पण्णत्ते) हे भदन्त ! केवल ज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? ( गोयमा) हे गौतम ! ( से समास चउवि पण्णत्ते) वह संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है । (तंजहा) जैसे (दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ) द्रव्यकी अपेक्षा, क्षेत्रकी अपेक्षा, कालकी अपेक्षा और भावकी अपेक्षा (दवओणं केवलनाणी सव्यदवाई जाणइ, पास एवं जाव भावओ) द्रव्य की अपेक्षा केवलज्ञानी समस्त द्रव्योंको जानता है और देखता है । इसी तरहसे वह यावत् भावकी अपेक्षा भी समस्त भावोंको जानता देखता है | (मइ अन्नाणस्स णं संते ! केवइए विसए पण्णत्ते) हे भदन्त ? (सत्यज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! ( से समासओ विहे पण्णत्ते) वह संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है । (तंजहा) जैसे (दव्बओ, खेतओ, कालओ. भावओ) द्रव्यकी દ્રવ્યની અપેક્ષાથી ઋજીમતી મન વજ્ઞાની મનરૂપથી પરિત અન તપ્રદેશવાળા, અનંત સ્કંધે ને જેવી રીતે ન દીસૂત્રમાં વળ્યુ છે-યાત્ તેવીજ રીતે ભાવપયત જાણે છે અને દેખે છે केवलनाण सण भंते केवइए विसर पण्णत्त' हे महन्त | वणज्ञानना વિષય કેટલા કહ્યા છે? 6 गोयमा' हे गोतम ! से समामओ चविहे पण्णत्ते' ते संक्षेप्तथा यार अारना या 'त जहा ' म 'दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ ' द्रव्यनी अपेक्षाथी, क्षेत्रनी अपेक्षाथी, अणनी अपेक्षाथी भने लावनी अपेक्षाथी दव्वओ णं केवलनाणी सव्वदच्चाई जाणइ पास एवं जाव भात्रओ, द्रव्यनी અપેક્ષ એ કેવળજ્ઞાની સમસ્ત ( સધળાં ) બ્યાને જાણે છે અને દેખે છે એજ રીતે તે યાવત્ ભાવની અપેક્ષા પ ત પણ સઘળા ભાવેને જાણે છે અને દેખે છે. 'म अन्नास्तणं भंते केवइए विसर पण्णत्ते ' हे भगवन् 1 મન્યજ્ઞાનના વિષય बिहे पण्णत्ते '
6
उटा छे ? ' गोयमा ' हे गौतम
L
से समासओ