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चन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ मृ. ११ ज्ञानगोचरनिरूपणम्
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गौतम ! म समासतञ्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, द्रव्यत खलु अवधिज्ञानी रूपिद्रव्याणि, जानाति, पश्यति, यथा नन्द्यां यावत् भारत: ! मनः पर्यवज्ञानस्य खलु भदन्त ! कियान विषयः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! स समासतचतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालत, भावतः, द्रव्यतः खलु ऋजुमति अनन्तान् अनन्तप्रदेशिकान् यथा नन्द्यां यावत् भावनः । (ओहिना णस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते) हे भदन्त ! अवधि ज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? ( गोयमा ) हे गौतम ! ( से समासओ चडविहे पण्णत्ते तं जहा दव्बओ, खेत्तओ, कालओ, भानओ) rafuज्ञानका विषय संक्षेप से चार प्रकारका कहा गया है। जैसे- द्रव्य की अपेक्षा, कालकी अपेक्षा और भावकी अपेक्षा (दव्वओ ओहिनाणी रुविदव्वाई जाणइ, पासइ) द्रव्यकी अपेक्षा अवधिज्ञानी रूपी द्रव्योंको जानता है देखता है । (जहा नंदीए जाव भावओ) इस तरह जैसा नंदी सूत्र में कहा गया है उसी तरह से यावत् भाव तक जानना चाहिये । (मणपज्जवनाणस्म णं भंते ! केवइए विसर पण्णत्ते) हे भदन्त ! मनः पर्यवज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम । (से समासओ चउच्चिहे पण्णत्ते ) मनः पर्यवज्ञानका विषय संक्षेप से चार प्रकारका कहा गया है । (तं जहा ) जो इस प्रकार से है. (दव्वओ, खेत्तओ, कालओ भावओ) द्रव्यकी अपेक्षा, क्षेत्रकी अपेक्षा, - काकी अपेक्षा और भावकी अपेक्षा (दन्त्रओ णं उज्जुसई अणं अतहे भगवन्! अवधिज्ञानना विषय ऐसा प्रहारना या छे । 'गोयमा' हे गौतम ' " से समासओ चउविहे पणत्ते तं जहा दव्वओ खेत्तओ, कालओ, भावओ ' -અવધિજ્ઞાનના વિષય સ ક્ષેપથી ચાર પ્રકારના છે જેમકે દ્રવ્યની અપેક્ષાથી ક્ષેત્રની अपेक्षाथी, आअजनी अपेक्षाया भने लावनी अपेक्षाथी 'दव्वओणं ओहिनाणी रूवि Goats जाणइ पासइ * દ્રવ્યની અપેક્ષાથી અવધિજ્ઞાની રૂપિ દ્રવ્યાને જાણે છે અને દેખે છે. जहा नंदीए जाव भावओ' भेट रीते नेत्री रीते नहीसूत्रमा ठडेवामां આવ્યુ છે યાવત્ – ભાવપ` ત સમજી લેવુ मणपज्जवनाणस्स णं भंते केवइए त्रिसए पण्णत्ते' हे भगवन् । मनःपर्यवज्ञानना डेंटला विषय या छे ? ' गायमा हे गौतम! ' से समासभ चउन्त्रि पन्नत्ते ' मनःययवज्ञाननां विषय सक्षेपथी ચાર પ્રકારના કહ્યા છે तं जहा ' ते प्रभा छे. 'दनाओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ ' द्रव्यनी अपेक्षाथी, क्षेत्रनी अपेक्षाथी, भजनी अपेक्षाथी भने लावनी अपेक्षाथी दन्वओ गं उज्जुमई अनंते अनंतपएसिए जहा नंदीए जाव भावओ '
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