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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ सू. ९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, तस्य अलव्धिकानां पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया ||४|| दानलव्धिकानां पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया, तस्य अलब्धिकानां पृच्छा ? गौतम ! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः, नियमात् एक ज्ञानिनः केवलज्ञानिनः ॥ ५ ॥ एवं यावत् वीर्यस्य लब्धिः, अलब्धिश्व भणितव्या, वालवीर्यलब्धिकानां त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि च अज्ञानानि भजनया, होते हैं । ( जे तिन्नाणी, ते आभिणियोहिय नाणी, सुर्यनाणी ओहिनाणी) जो तीन ज्ञानवाले होते हैं उनमें आभिनियोधिक ज्ञानी होते हैं, श्रुतज्ञानी होते हैं और अवधिज्ञानी होते हैं- ( तस्स अलद्धिया पंचनाणाई, तिन्नि अण्णाणाई भगणाए ) जो जीव चारित्राचारित्र लब्धिवाले नहीं होते हैं उनके भजनासे पांच ज्ञान होते हैं या तीन अज्ञान होते हैं । (दाणलडिया णं पंचनाणाई, तिन्नि अण्णाणाई भयणाए) दानलब्धिवाले जीवों के भजना से पांच ज्ञान या तीन अज्ञान होते हैं । ( तस्स अलद्धिया णं पुच्छा ) हे भदन्त ! जो दानलब्धिवाले जीव नहीं होते हैं वे क्या ज्ञानी होते
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या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (नाणी, नो अन्नाणी नियम एगनाणी केवलनाणी) दानलब्धिसे रहित जीव ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं होते हैं । ज्ञानी होने पर भी वे नियम से एकज्ञानकेवलज्ञानवाले होते हैं । ( एवं जाव वीरियस्सलद्धी, अलद्धी य भाणिया) इसी तरहसे वीर्यलब्धिवाले और इसकी अलब्धिवाले तेथेो आलिनिषेोधिः गने ज्ञानवाणा होय हे ' जे तिन्नाणी ते आभिणिवोयिनाणी सुयनाणी ओहियनाणी ' ने त्रष्यु ज्ञानवाणा होय है तेभा अलिनिनोधि જ્ઞાનવ ળા, શ્રુતજ્ઞાનવાળા અને અવધિજ્ઞાનવાળા હોય છે तस्स अलद्धियाणं पंचनाणा तिन्नि अन्नाणाई भयणाए ' कायारिन्यान्यरित्र्य सम्धिवाणा होता નથી તેએાને ભજનાથી પાંચ જ્ઞાન અને ત્રણુ અજ્ઞાન હાય છે दाणलद्धियाणं पंचनाणाइ तिन्नि अन्नाणाई भगाए " દાનલબ્ધિવાળા જીવાને ભજનાથી પાચ જ્ઞાન અને ત્રણ અજ્ઞાન હેાય છે. तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' हे भगवान ! ने દાનલબ્ધિવાળા જીત્ર નથી હોતા તેઓ જ્ઞાની હાય છે કે અજ્ઞાની હોય છે गोयमा हे गौतम! 'नाणी नो अन्नाणी नियमा एगनाणी केवलनाणी ' धनसम्धि रहित જીવ જ્ઞાની હાય છે અજ્ઞાની હાતા નથી અને જ્ઞાનીએમ પણ તે નિયમયી કેવળ थे! ज्ञानी ४ होय छे ' एवं जाव वीरियलद्धि अलद्धिय भाणियव्या ' खेन रीते विय'सम्धिवाजा गने तेनी असन्धिवाना भवना विषयभा पशु समन्वु, 'बालवी रिय
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