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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०८ उ. २ ० ८ लब्धिस्वरूपनिरूपणम्
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मूलम् - दंसणलडिया णं भंते! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि, पंच नाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, तस्स अलद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? गोयमा ! तस्स अलद्धिया नत्थि, सम्मदंसणलद्धियाणं पंचनाणाई भयणाए, तस्स अलद्धियाणं तिन्नि अण्णाणाई भयणाए । मिच्छादंसणलद्धिया णं भंते! पुच्छा : तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, तस्स अलखियाणं पंच नाणाई तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए सम्मामिच्छादंसणलद्धिया य, अलखिया य, जहा मिच्छादंसणलद्धिया, अलद्धिया तहेव भाणियव्वा शासू. ८॥
छाया - दर्शनलब्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः, गौतम ! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया, तस्य अलब्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? गौतम !
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'दंसणलडिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' इत्यादि.
सूत्रार्थ - (दंसणलडिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! जो जीव दर्शनलब्धिवाले होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम! (नाणी वि, अन्नाणी चि) हे गौतम ! दर्शनलब्धिवाले जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं (पंच नाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए ) जो ज्ञानी होते हैं उनके पांच ज्ञान और जो अज्ञानी होते हैं उनके तीन अज्ञान भजनासे होते हैं । ( तस्स अलद्धियाणं भंते !
'दंसणलद्धियाण मंते जीवा किं नाणी अन्नाणी ' छत्यादि
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सूत्रार्थ :- दंसणलद्धियाणं भंते किं नाणी अन्नाणी ' डे लगवान् ।
જીવ દશનલબ્ધિવાળા હાય છે તે જ્ઞાની હાય છે કે અજ્ઞાની હાય છે ઉ :'गोयमा हे गौतम! 4 नाणी व अन्नाणी त्रि' दर्शनसन्धिवाजा कव। ज्ञानी पशु होय छे श्मने अज्ञानी पशु होय छे 'पंचनाणाइ तिन्नि अन्नाणाई भगणाए ' ने ज्ञानी હેાય છે તેઓને પાચ જ્ઞાન અને જે અજ્ઞાાની હાય છે તેને ત્રણ અજ્ઞાન ભજતાથી होय छे 'तस्स अलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी ' ભગવાન્ જે