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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ सू. ५ ज्ञानभेद निरूपणम्
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विकाइया जहा एगिंदिया एवं जाव चउरिंदिया' पर्याप्तकाः पृथिवीकायिकाः यथा एकेन्द्रियाः नोज्ञानिनः, अपि तु द्वयज्ञानिनः प्रतिपादिताः तथा नेोज्ञानिनः, अपितु मत्यज्ञान - श्रुताज्ञानलक्षणत्रयज्ञानिनो अवन्ति, एवं पृथिवीकायिकदेव यावत्-पर्याप्तकाः अपकायिकाः, तेजस्कायिकाः, वायुकायिकाः, वनस्पतिकायिकाः, द्वीन्द्रियाः त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रिया अपि नियमतः यज्ञानिन एव भवन्ति इति भावः । गौतमः पृच्छति - 'पज्जत्ता णं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोगिया किं नाणी नाणी ?' हे दन्त ! पर्याप्तकाः खलु पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः किं ज्ञानिनों भवन्ति, अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह 'तिन्नि नाणा, तिन्नि अन्नाणा भयणाए' हे गौतम! पर्याप्तकानां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि च भजनगा भवन्ति, पर्याप्तकपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः केचिद् कुमार, वायुकुमार, स्तनितकुमार, भी नियमसे त्रिज्ञानी और व्यज्ञानी कहना चाहिये | 'पुढविकाइया जहा एगिंदिया एवं जाब चरिंदिया' जिस प्रकार एकेन्द्रिय ज्ञानी नहीं, किन्तु दोअज्ञानवाले कहे गये हैं उसी प्रकार से पर्यातक पृथिवीकायिक ज्ञानी नहीं होते हैं, किन्तु सत्यज्ञान प्राज्ञानरूप दो अज्ञानवाले होते हैं । पृथिवीकायिककी तरह ही घावत् पर्याप्त, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनरपतिकायिक, बीन्द्रिय, नीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय भी नियम से दोअज्ञानवाले ही होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रभुले पूछते हैं 'पज्जत्ताण अंते ! पंचिदिया तिरिक्खजोणिया किनाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! पर्याप्तक पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तर प्रभु कहते हैं 'तिन्निनाणा, तिन्नि अन्नाणा भयणा' हे गौतम ! कोईर पर्याप्तिक पंचेन्द्रिय तयग्योनिक मतिज्ञानवाले, श्रुतज्ञानवाले और अवधिज्ञान
त्रज्ञान अनेत्र ज्ञानवाणा होय छे. ' पुढनिकाइया जहा एगिदिया एवं जाव चाउरिदिया ' वा राते गोडेन्द्रिय वने मे अज्ञानवाणा सा छे ते रीते પર્યાપ્તક પૃથ્વીકાચિક, મત્યજ્ઞાન, અને શ્રુતાજ્ઞાનરૂપ કે અજ્ઞાનવાળા હાય છે. पृथ्वी अयिोनी भाइ४४ यावत्-पर्याप्त न्यायिक, तेजसायिक, वायुप्रथिङ, वनस्पति अयि, न्द्रियो या नियमथी मे अज्ञानवाणा होय छे. प्रश्न:- पज्जत्ताणं भंते पंचिंदिया तिरिकख जोणिया किं नाणी अन्नाणी ' ? हे भगवन ! पर्याप्त पश्येन्द्रिय तियेय योनी त्र शुं ज्ञानी होय छेडे अज्ञानी होय छे ? G - ' तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयगाए' हे गौतम । ४ पर्याप्त यथेन्द्रिय तियेथे योनि જીવ, મતિજ્ઞાન શ્રુતજ્ઞાનવાળા અને અવિધજ્ઞાનવાળા હાય છે, અને કાર્ય કોઇ પર્યાપ્તક