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________________ ३७६ भगवतीसूत्रे नियमात् द्वयज्ञानिनस्तथा सूक्ष्मा अपि नियमतो मिथ्याष्टित्वात् द्वधज्ञानिनः । गौतमः पृच्छति-'वादरा णं भंते ! जीया किनाणी, अनाणी ?' हे भदन्त ! बादराः खलु जीवाः कि ज्ञानिनः ? कि वा अजानिनो भवन्ति ? भगवानाह'जहा-सकाइया' हे गौतम ! बादराः केवलिनोऽपि भवन्ति अतः यथा सकायिका भजनया पञ्च ज्ञानिनः, यज्ञानिनश्चोक्तास्तथा भजनयैव पञ्च नानिनः, व्यशानिनो विज्ञेयाः। गौतमः पृच्छति-'नोसुहुमनोवायरा णं भंते ! जीवा कि नाणी, अन्नाणी ? हे भदन्त ! नो सूक्ष्मा नो वादराः खलु जीवाः कि ज्ञानिनः, किं वा अज्ञानिनो भवन्ति ? भगवानाह-'जहा सिद्धा' ४ हे गोतम ! यथा सिद्धाः श्रुताज्ञानी होते हैं उसी प्रकार सूक्ष्मजीव भी नियमसे रिथ्याष्टि होनेके कारण अत्यज्ञानी और श्रुताजानी होने हैं। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'बादराणं भंते ! जीवा किलाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! बादरजीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं हे गौतम ! बाहरजीव तो केवली भी होते हैं इसलिये जैसे सकायिकजीव भजनासे पांचज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले होते कहे गये हैं उसी तरहसे बादरजीव भी भजनासे पांचज्ञान वाले और तीन अज्ञानवाले होते हैं ऐसा जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'लोसुहुमा नोबादाणं भंते ! जीवा किं नाणो अन्नाणी' हे सदन्त ! नासूक्ष्म नोवादरजीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं, हे गौतम ! ' जहासिद्धा' जिस प्रकार सिद्धजीव केवलज्ञानरूप एकज्ञानरूप एकजानवाले होते हैं उसी અર્થાત તેઓ-મત્યજ્ઞાની અને શ્રુતજ્ઞાની હોય છે. તે જ રીતે સૂક છત્ર નિયમથી भिथ्याद्रष्टि डावाना ४२] मत्यज्ञानी मने श्रुतामजानी डाय छे प्रश्न वादाणं भंते जीवा कि नाणी अन्नाणी' लावत !' २ ७ शुशानी डाय छ । અજ્ઞાની હોય છે ઉત્તરમાં પ્રભુ પૂછે છે કે હે ગૌતમ! બાદરજીવો તે કેવળી પણ હોય છે એટલે જેવી રીતે અકાયક જીવ ભજનાથી પાચ જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હેવાનું કહ્યું છે એ જ રીતે બાદરજીવ પણ ભજનાથી પાચ જ્ઞાન અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા डाय वे गौतम स्वामी प्रभुने मे पूछे छे 'नोसुहमाण नोवादराणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' है सावान! नासूक्ष्म ७५ मने नमार છવ જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાની હોય છે? તેને ઉત્તર આપતા પ્રભુ કહે છે કે गौतम 'जहा सिद्धा' २ शत सिद्ध ७ जान३५ मे जानवाला डाय छ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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