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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८उ. २ सु. ५ ज्ञानभेदनिरूपणम्
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पादितास्तथा तेsपि पञ्चज्ञानिनः, त्र्यज्ञानिनश्च भवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'अकाइया णं भंते ! जीवा कि नाणी, अन्नाणी ? हे भदन्त ! अकायिकाः, नास्ति काय औदारिकादिलक्षणो येषां ते अकायाः, अकाया एव अकायिकाः खलु जीवाः किम् ज्ञानिनः ? किं वा अज्ञानिनो भवन्ति ? भगवानाह - 'जहा सिद्धा' हे गौतम ! यथा सिद्धाः प्रतिपादिताः, तथा अकायिका अपि केवलज्ञानलक्षणैकज्ञानिनो भवन्ति । अथ पञ्चमं सूक्ष्मद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति'हुमाणं भंते! जीवा किं नाणी; अन्नाणी ?" हे भदन्त ! सूक्ष्माः खलु जीवाः कि ज्ञानिनः, कि वा अज्ञानिनश्च स्युः ? भगवानाह - ' जहा पुढत्रिकाड्या' हे गौतम ! यथा पृथिवीकायिकाः. नो ज्ञानिनः अपि तु अज्ञानिनो भवन्ति, तत्रापि
कायिक जीव भी पांचज्ञानवाले और तीनअज्ञानवाले हो सकते हैं ऐसा जानना चाहिये । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं ' अकाइयाणं भंते! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव औदारिक आदिकायसे राहत होते हैं ऐसे अकायिकसिद्ध जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'जहासिद्धा हे गौतम ! जिस प्रकारसे सिद्धजीव प्रतिपादित किये गये हैं अर्थात् सिद्धजीव जैसे केवलज्ञानको लेकर ज्ञानी प्रकट किये गये हैं उसी प्रकारसे अकायिक जीव भी एक केवलज्ञानवाले ही होते हैं अज्ञानी नहीं होते हैं । अब पांचवें सूक्ष्मद्वारको आश्रित करके गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'हुमाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! जो सूक्ष्मजीव हैं, वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'जहा पुढविकाइया' हे गौतम ! जैसे पृथिवीकायिकजीव ज्ञानी नहीं होते हैं अपितु अज्ञानी ही होते हैं अर्थात् मत्यज्ञानी और
यांथज्ञानवाणा मने त्रायु अज्ञानवाणा होय हे प्रश्न - " अकाइया णं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भगवान ।। मौहाडि माहि अयथी रहित होय छे તેવા અકાયિક સિદ્ધ જીવનાની હાય છે કે અજ્ઞાની હોય છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ } 'जहा सिद्धा' नेवी रीते सिद्धांना विषयमा प्रतिपादन ४ छे -अर्थातસિદ્ધ જીવ જેવી રીતે કેવળજ્ઞાનને લને નાની પ્રકટ કરાયેલ છે તેજ રીતે કાયિક છત્ર પણ એક કેવળજ્ઞાનવાળા હેાય છે. અજ્ઞાની હાતા નથી. હવે પાંચમા સૂક્ષ્મદ્રારના माश्रय ४रीने गौतम स्वाभी असुने गोधुं पूछे छे डे ' सुहुमाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी ' सूक्ष्म को, हे भगवन ! ज्ञानी होय छे ! अज्ञानी ? उत्तरमा प्रभु 'जहा पुढविकाइया ' ते पृथ्वीअयि कोनी भाइ अज्ञानी होय. छे.