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भगवतीसूत्रे किं मनःमयोगपरिणतानि, वचःप्रयोगपरिणतानि, कायप्रयोगपरिणतानि ? एवम् एतेन क्रमेण पञ्च, पद, सप्त, यावत् दश, संख्येयानि, असंख्येयानि, अनन्तानि च द्रव्याणि भणितव्यानि, द्विकसंयोगेन, त्रिकसंयोगेन यावत् दशसंयोगेन, द्वादशएक दव्य विस्त्रमा परिणत होता है २, (अहवा दो पओगपरिणया, एगे भीसापरिणए, एगे वीससापरिणए ३) अथवा दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, एकमिश्रपरिणत होता है और एक विस्रसा परिणत होता है ३, (जह पओगपरिणया किंमणप्पओगपरिणया) हे भदन्त ! चार द्रव्य यदि प्रयोग परिणत होते हैं तो क्या वे मनः प्रयोगपरिणत होते हैं या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं या कायप्रयोग परिणत होते हैं ? ( एवं एएणं कमेणं पच, छ, सत्त, जाच दस, संखेजा, असंखेज्जा, अणता य व्या, दुयासंजोएणं, तियासंजोएणं, जाव दस संजोएणं, वारससंजोएणं, माणियब्वा) हे गौतम ! इस विषयमें समस्त कथन पहिले किये कथनके अनुसार ही जानना चाहिये । इसी प्रकार से क्रमानुसार पांच, छ, सात, यावत् दश, संख्यात, असंख्यात और अनन्त द्रव्योंके हिकसंयोग विकसंयोग, यावत् दशसंयोग, बारह सयोग कह लेना चाहिये । (उवजुंजिऊणं भने मे द्र०य विससा परिण1 साय छ २ 'अहवा दो पयोगपरिणया, एगे मीसा परिणए, एगे विससा परिणए' अथवा मे द्र०य प्रयापरिष्यत, ये मिश्र परिणत डाय छ भने मे विससा परिणत होय छे 3 'नइ पोगपरिणया कि मणप्पओगपरिणया ३' मगवन् या२ द्रव्य ले प्रयोगपरिणत य तो शुत મન.પ્રાગ પરિણત હેય છે? વચનપ્રયોગ પરિણત કે કાયપ્રયોગ પરિણત હોય છે? "एवं एएणं कमेणं पंच, छ, सत्त जाव दस, स खेजा, असं खेज्जा, अणंता य दव्या दुया स योएणं, तिया संयोएणं, जाव दस संजोएणं; वारस संजोएणं भाणियवा' हे गौतम मा विषयमा सघणु ४यन पडे। ४२वामा मावेस ४थनानुसार સમજી લેવું અને એ જ રીતના ક્રમ પ્રમાણે પાચ, છ, સાત,–જાવત–દશ, સંખ્યાત અસ ખ્યાત અને અનંત દ્રવ્યોના દ્વિક સંયોગ, ત્રિક સાગ- યાવત- દશ સંગ, બાર स या सभ७० वा. ' उवजु जिउणं जत्थ जत्थिया सजोगा उडेति ते सव्वे