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भगवतीसूत्रे बाढरेऽपि ! एवं यावत् वनस्पतिकायिकानां चतुष्को भेदः, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणां द्विको भेदः-पर्याप्तकश्च. अपर्याप्तकश्च । ___ यदि पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं किं तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौ दारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत, मनुष्यपञ्चेन्द्रि ययावत्-परिणतम् ? गौतम ! तिर्यज्योनिकयावत्परिणतवा, मनुष्यपञ्चेन्द्रिययावत् परिणत वा । एकेन्द्रियके औदारिक शरीररूपकायप्रयोगले श्री परिणत होता है। (एक बादरे शि) इसी तरहसे वह एकद्रव्य पर्याप्त अपर्याप्त पृथिवीकायिक बादर एकेन्द्रियके औदारिक शरीररूपकायपयोगलेभी परिणत होता है ऐसा जानना चाहिये । (एवं जाव वणलइकाइयाणं जउक्कओ भेदो) इसी तरहसे वह एक द्रव्य यावत् सूक्ष्म पर्यात, सूक्ष्मअपर्याप्त बादर पर्याप्तक बादर अपर्याप्त, यावत् वनस्पतिकायिकके इन चारभेदोंके
औदारिक शरीररूप कायप्रयोगले परिणत होता है यह कथन भी जानना चाहिये । (वेइंदिय, तेइंदिय, चरिंदियाणं दुयओ भेदो पजत्त गाय अपजत्तणाय) इसी तरहसे वह एक द्रव्य वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवोंके पर्याप्तक अपर्यातक के औदारिक शरीररूपकायप्रयोगसे परिणत होता है ऐसा भी जानना चाहिये । (जइ पचिंदिय ओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए किं तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय
ओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए कि अणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए) हे भदन्त ! यदि वह एक द्रव्य पंचेन्द्रिय जीवके औदारिक शरीररूपकायके ४ायप्रयोगथा ५९ प२रात थाय छे (एवं वादरे वि) प्रभाग तो न्य ગૃપ્ત અને અપર્યાપ્ત બાદર પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરરૂપ કાયપ્રયોગથી ५९ पति याय छे मेम समन्. (एवं जाव वणरूसइकाइयाणं चउकओ भेदो) એ જ પ્રમાણે તે એક દ્રવ્ય સૂમ પર્યાપ્ત, સમ અપર્યાન, ભાદર પર્યાપ્ત, અને બાર અપર્યાપ્તરૂપ, ચાર ભેદવાળા અપકાયિક, વાયુકાયિક, તેજસ્કાયિક અને વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરરૂપ કાયપ્રયોગથી પણ પરિણત થાય છે, એમ સમજવું
(वेइंदिय, तेइंदिया, चउर दियाणं दुयो भेदो पन्जत्तमा य अपज्जत्तगा य) એ જ પ્રમાણે તે એક દ્રવ્ય હીન્દ્રિય, બ્રીન્દ્રિય અને ચતરિન્દ્રિય જીવોના પર્યાપ્તક અને અપર્યાપકના દારિક શરીરરૂપ કાર્યપ્રયોગથી પણ પરિણત થાય છે એમ સમજવું.
(जइ पंचिंदिय ओरालिय सरीरकायप्पओग परिणए, किं तिरिक्खजोणिय पंचिंदियओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए, भणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए ?) હે ભદન્ત! જે તે એક દ્રવ્ય પચેન્દ્રિય જીવોને ઔદારિક શરીરરૂપ, કાયના પ્રયોગથી