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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. ९ सू. ४ रथमुसलसंगामनिरूपणम् ७१५ राजश्च एते-अजयन्-जितवन्तः 'नवमलई, नवलेच्छई पराजइत्था' नवमल्लकिनः, नवलेच्छकिनश्च पराजयन्तः पराजितवन्तः चमरेण रथमुसले संग्रामे विकुर्विते कूणिकः किं कुर्यादित्याह-'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं से कणिए राया रहमुसल संगामं उवढिय, सेसं जहा महासिलाकंटए' ततः खलु स कणिको राजा रथमुसलं संग्रामम् उपस्थित ज्ञात्वा कौटुम्बिकपुरुषान शब्दयति, शब्दयित्वा एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-भो देवानुपियाः ! क्षिप्रमेव भूतानन्दं नाम हस्तिराजं परिकल्पयत, सज्जीकुरुत, इत्यादि शेषं यथा महाशिलाकण्टके संग्रामे वर्णितं तथा अत्रापि विज्ञेयम् , किन्तु 'नवरं भूयाणंदे राजा और अमरेन्द्र असुरकुमारराज चमर ये सब उस रथमुसल संग्राममें विजय पाये हैं तथा 'नवमल्लई, नवलेच्छई पराजइत्था' काशीके नौ गणराज मल्लकी नामके राजा तथा कौशल देशके गणराज नौलेच्छकी नामके राजा उस युद्धमें पराजय फाये हैं । रथमुमल संग्राम जब चमरने विकुर्वित किया तब कुणिक राजाने क्या किया ? इसको बताने के लिये सूत्रकार कहते हैं कि 'त एणं से कूणिए राया रहमुसलं सगाम उवट्ठिय सेस जहा महासिलाकंटए' जब कणिक राजाने रथमुसल संग्रामको उपस्थित हुआ जाना तब उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषोंको बुलाया बुलाकर उनसे उसने ऐसा कहा कि हे देवानुपियों ! तुम बहुत ही जल्दी मेरा पट्टहाथी जो भूतानन्द नामका है उसे सज्जित कर ले आओ इत्यादि समस्त ही कथन जैसा महाशिला कण्टक स ग्रामको बक्तव्यतामें कहा गया है वैसा ही यहां पर भी जानना चाहिये । परन्तु उस वक्तव्यता की अपेक्षा इस वक्तव्यतामें केवल इतना ही अन्तर है कि वहां पर थयो, तया 'नवमलई, नवलेच्छई पराजइत्था' सीन नमातिना गरात। તથા કેશલના નવ લિચ્છવી જાતિના ગણરાજાઓ તેમાં પરાજિત થયા. જ્યારે એમને રથમુશલ સગ્રામની વિમુર્વણ કરી, ત્યારે કુણિક રાજાએ શુ કર્યું તે સૂત્રકાર પ્રકટ ४रे छे-तएणं से कृणिए राया रहमुसलं सगामं उपट्टियं सेसं जहा महासिला कंटए' न्यारे २थभुसल संभ ४२पानी प्रसग पश्थित थयो, त्यारे भूणुि: शतमे પિતાના કુટુંબી પુરુષને બતાવ્યા, અને તેમને કહ્યું- હે દેવાનુપ્રિયે ! તમે મારા ગજરાજ ભૂતાનંદને સજજ કરે, ચતુરંગી સેનાને સજ્જ કરે.” ઈત્યાદિ સરસ્ત કથન મહાશિલાકંટક સંગ્રામના પ્રકરણમાં આપ્યા પ્રણાણે અહી પણ ગ્રહણ કરવું તે કથન કરતાં આ કથનમાં આટલી જ વિશેષતા છે–ત્યાં ઉદાયી હાથીને સજ્જ કરવાનું કહ્યું છે,
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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