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________________ ४८ भगवतीसूत्रे अंगे, इहए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे. नलिणे, अत्थनिऊरंगे, अत्थनिउरे, अउअंगे, अउए, पउअंगे, पउएय, नवुअंगे, नवुएय, चूलीअंगे, चूलिआय, सीस पहेलि अंगे, सीस पहेलिया, एतावताव गणिए, एतावतावगणियस्स विसए, तेणपरं उवमिए ॥ सू. २ ॥ छाया-एकैकस्य खलु भदन्त ! मुहूर्तस्य कियत्यः उच्छ्चासाद्धा व्याख्याताः ? गौतम ! असंख्येयानां समयानां रामुदयसमितिसमागमेन सा एका 'आवलिका' इति प्रोच्यते, संख्येया आवलिका उच्छ्वासः, संख्येया आवलिका नि:श्वास: हृष्टस्यानवकल्पस्य निरुपक्लिष्टस्य जन्तोः । एकः उच्छ्वासनिश्वासः, एष प्राण इत्युच्यते ॥१॥ गणनीय काल वक्तव्यता'एगमेगस्स णं भंते' इत्यादि । सूत्रार्थ- (एगमेगस्स णं भंते! मुहुत्तस्स केवइया ऊसासद्धा बियाहिया) हे भदन्त ! एक २ मुहूर्त के कितने उच्छ्वास काल कहे है? (गोयमा) हे गौतम! (असंज्जाणं समयाणं समुदयसमिह समागमेणं सा एगा 'आवलिय' ति पवुच्चा, संखेज्जा आवलिया ऊसासो, संखेज्जा आवलिया निस्सासो) असंख्यात समयोंकी समितिके समागमसे जितना काल होता है वह एक आवलिका कहलाती है । संख्यात आवलिका का एक उच्छ्वास होता है। इसी तरह से संख्यात आवलिका का एक निःश्वास होता है। (हस्स अणवगल्लस्स ગણનીય કાલવકતવ્યતા(एगमेगस्स ण भंते !' त्यादि । सूत्रा-(एगमेगस्स णं भंते । मुहत्तस केवइया ऊसासद्धा वियाहिया)? मन्त! प्रत्ये४ भुतना सा वास to zथा छ ? (गोयमा !' हे गीतमा (असंखेज्जाण समयाणं समृदयसमिइसमागमेणं सा एगा 'ओवलिय त्ति पवुन्चह, संखेज्जा आवलिया ऊसासो, संखेज्जा आवलिया निस्सासो) અસ ખ્યાત સમયની સમિતિના સમાગમથી જેટલું કાળ થાય છે, એટલા કાળને એક અવલિકા કહે છે. સંજયાત અવલિકાને એક નિશ્વાસ થાય છે.
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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