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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ६उ. ७.१ शालिमभृतिजीवविशेषयोनि स्वरूपनिरूपणम् ४७ यथा शालीनां पूर्व प्रतिपादितम्, किन्तु नवरं - विशेषः उत्कृष्टेन सप्त संवत्सरान् शेणं - जघन्येन तु तदेव शालीप्रभृतिवदेव अन्तर्मुहर्त्तम् विज्ञेयम || सू० १ || मूलम् - एगमेगस्स णं भंते! मुहुत्तस्स केवइया ऊसासद्धा वियाहिया ? गोयमा ! असंखेजाणं समयाणं समुदय समिइ समागमेणं-सा एगा 'आवलिय'ति पच्चइ, संखेज्जा आवलिया ऊसासो संखेज्जा आवलिया निस्सासो ! हटुस्स अणवगल्लस्स निरुवकिटुस्स जंतुणो । एगे ऊसास - नीसासे एस पाणु त्ति वुच्चइ ॥ १ ॥ सत्त पाणि से थोवे; सत्त थोवाई से लवे | लवाणं सत्तहत्तर, एस मुहुत्ते वियाहिए ॥ २॥ तिष्णि सहस्सा सत्तसयाई तेवत्तरि च ऊसासा । एस मुहुत्तो दिट्ठो, सवेहिं अनंतनाणीहिं ॥ ३॥ एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्ता, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासे, दो मासा उऊ तिण्णिय उऊ अयणे, दो अयणाई संवच्छराई जुगे, वीसं जुगाई वाससयं, दसनीससयाई वाससहस्सं इत्यादि ० चउरासीइं वाससय सहस्साणि से एगे पुवंगे, चउरासीइं पुवंग सय सहस्साइं से एगे पुब्वे, एवं तुडिअंगे, तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे, अववे, हूहू शाली आदि धान्योंके कालके जैसा ही है परन्तु इनके कालमें विशेपता इतनी ही है इनका उत्कृष्ट काल सातवर्षतकका है । और जघन्यकाल तो शालि आदिके जघन्यकाल जैसा अन्तर्मुहूर्त्तका ही हैं ॥सू.१॥ ધાન્યાના અકુર।ત્પાદન કાળ જેટલેા જ કહ્યો છે અંકુરાત્ત્પાદન કાળ સાત વર્ષ સુધીના હાય છે, જઘન અંકુરાત્પાદન કાળ તે શાલી આદિના होय ॥ सू १ ॥ પણ અળસી આદિને અધિકમા અધિક એટલી જ વિશેષતા સમજવી. તેમને જેટલેા જ એટલે કે અન્તર્મુહૂર્તના
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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