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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. ९ सू. २ महाशिलाकण्टकसंग्रामनिरूपणम् ६८३ नवमल्लकिनः, नवलेच्छकिनः काशी-कौशलकाः अष्टादशापि गणराजाः पराजयन्तः पराजितवन्तः । ततः खलु स कूणिको राजा महाशिलाकण्टकं संग्रामम् उपस्थितं ज्ञात्वा कौटुम्विकपुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवम्अवादीत-क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः ! उदायिं हस्तिराजं परिकल्पयत, हय-गज और किन्होंने हार पाई ? (गोयमा) हे गौतम ! (वजी विदेहपुत्तेजइत्था, नवमल्लई नवलेच्छई कासी कोसलगा अट्ठारस वि गणंगयाणो पराजइत्था) वज्रो-इन्द्र और विदेहपुत्र कूणिक इन्होंने तो जय प्राप्तकी, तथा नवमल्लकी और नवलेच्छको जो की काशी एवं कोशलदेश के अठारह गणराजा थे इन्हों ने हार पाई-अर्थात् वज्री और विदेहपुत्र जीते और ये १८ गणराजा हार गये. (तएणं से कोणिए राया, महासिलाकंटयं संगाम उवट्टियं जाणित्ता, कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ) इस के बाद कूणिक राजाने महासिलाकंटक सग्राम को उपस्थित हुआ जानकर अपने कौडम्बिक पुरुषों को बुलाया (सदावित्ता एवं वयासी) बुलाकर उनसे ऐसा कहा-(खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! उदाई हत्थिरायं पडिकप्पेह) हे देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही उदायी नामक पट्टहाथी को तैयार करो। (हय गय-रह-जोहकलियं (गोयमा !) 3 गौतम । (वजी विदेहपुत्ते जइत्था, नवमल्लई नवलेच्छई कासी कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्था) ते सग्राममा qont-न्द्र અને વિદેહપુત્ર કૃણિકને વિજય થયું અને નવમલ જાતિના અને નવ લિચ્છવી જાતિના એ રીતે કાશી અને કેશલ દેશના જે ૧૮ ગણરાજાઓ હતા, તેમને પરાજય થયે. એટલે કે વજી અને વિદેહપુત્ર છત્યા અને ૧૮ ગણરાજાઓ હારી ગયા હવે તે સંગ્રામનું પૂર્વવૃત્તાંત આપવામાં આવે છે (तएणं से कोणिए राया, महासिलाकंटयं संगाम उवट्ठियं जाणित्ता, कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ) न्यारे शिगने. भाशिमा सयाम थपाना સગે ઉપસ્થિત થયેલા જણાયા, ત્યારે તેમણે પિતાના કૌટુંબિક પુરુષને પિતાની पासे माताव्या, (सदावित्ता एवं वयासी) भने मासापान मा प्रभाव यु- (खिप्पामेव भो देवाणुपिया! उदाई हत्थिरायं पडिकप्पेह ) ७ हेवानुप्रिये ! तमे तुरत Serयी नामना भुण्य साथीने तया२ ४२। हय-गय-रह-जोहकलियं
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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