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________________ ६८२ भगवती सूत्रे पुरओ से सक्के देविंदे देवराया एवं महं अभेज्जकवयं वइरपरूिवगं विउद्वित्ताणं चिट्ठइ । एवं खलु दो इंदा संगामं संगाति, तं जहा - देविंदे, मणइंदे य । एगहत्थिणा विणं पभू कणिए राया पराजिणित्तए । तरणं से कूणिए राया महासिलाकंटयं संगामं संगोमेमाणे नवमल्लई, नवलेच्छई कासी - कोसलगा, अट्टारस वि गणरायाणो हयमहियपवरवीरघाइयनिवडिय - चिंधद्धयपडागे किच्छपाणगए दिसोदिसिं पडिसेहित्था | ॥सू०२ ॥ छाया - ज्ञातमेतद् अर्हता, विज्ञातमेतद् अर्हता, न्मृतमेतत् अर्हता, महाशिलाकण्टकः संग्रामः, महाशिलाकण्टके खलु भदन्त ! संग्रामे वर्तमाने केऽजयन के पराजयन्तः ? गौतम ! बज्रीविदेहपुत्रः अजयत् महाशिलाकण्टक संग्रामवक्तव्यता 'णायमेय' अरया विन्नायमेय अरहया' इत्यादि । सूत्रार्थ - ( णायमेय अरहया, विनायमेय अरहया, सुयमेय अरहया, महासिला कंटए संगामे महासिलाकंटएणं भंते ! संगामे वहमाणे के जइत्था के पराजइत्था ) अर्हत प्रभुने यह जाना है, अर्हतप्रभुने यह विशेषरूपसे जाना है, अर्हतप्रभुने यह याद जैसा किया है कि महाशिलाकंटक नामका संग्राम के होनेपर किन्होंने जय प्राप्त किया - મહાશિલાક ટક સગ્રામની વકતવ્યતા— 'णायमेयं अरहया, विन्नायमेयं अरहया' इत्याह सूत्रार्थ - ( णायमेयं अरहया, विन्नायमेयं अरहया, सुगमेयं अरहयामहासिलाकटए संगामे - महासिलाकदए णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था के पराजइत्था ?) भड्डाशिक्षाएं 23 नामना संग्राम विषे अहुत प्रभु लएयुं छे, અહ`ત પ્રભુએ વિશેષરૂપે જાણ્યુ છે, અંત પ્રભુએ જાણે કે તેને યાદ જ કરી લીધું છે, તે મહાશિલાક ટક સગ્રામમાં કોને વિજય મળ્યે, અને કૅને પરાજય થયે
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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