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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श.७ उ.७ मु.४ असंशिजीवादिनिरूपणम् ६२९ दर्शनशक्तिसम्पन्नोऽपि नो प्रभुः नो कथमपि समर्थों भवति पुरतः अग्रे विद्यमानानि अपि रूपाणि अनिध्याय खलु उपयोगमविधाय द्रष्टुम्, उपयोगं विना चक्षुष्मानपि जनः पुरोवत्तीनि रूपाणि द्रष्टुं समर्थों न भवतीत्याशयः, तथा 'जेणं नो पशू मग्गओ रूपाइं अणवयक्खित्ताणं पासित्तए' यः खलु दर्शनशक्तिसम्पन्नोऽपि नो प्रभुः नैव कथमपि समर्थों भवति मार्गतः पृष्टतो रूपाणि अनवेक्ष्य पश्चाद्भागमनवलोक्य खलु द्रष्टुस्, एवं 'जे णं नो पभू पासओ रूबाई अणदलोडत्ता गं पासित्तए' यः खलु चक्षुष्मानपि जीवः नो प्रभुः न कथमपि समर्थों भवति पावतो रूपाणि अनवलोक्य विचारमकृत्वा खलु द्रष्टुम्, तथैव 'जेणं नो पमू उड़ रूबाइं अणालोएत्ता णं पामित्तए' यः खलु दर्शनशक्तिसम्पन्नोऽपि नो खलु प्रभुः नैन कथमपि समर्थों भवति ऊर्वम् उपरितनानि । रूपाणि अनालोच्य खलु द्रष्टुम्, एवमेव 'जे णं नो पभू अहे रूबाइं अणालोशक्तिसे संपन्न बना हुआ भी प्राणी आगे रखे हुए पदार्थों को उपयोग विना देख नहीं सकता है 'जे णं नो पभू मग्गओ रूबाई अणवयक्खित्ताणं पासित्तए' तथा जैसे दर्शन शक्ति संपन्न भी पाणी पीछे रखे हुए पदार्थो को पृष्ठभागकी ओर देखे विना देखनेके लिये समर्थ नहीं हो सकता है, 'जे शं नो पभू पासओ रूबाई अणवलोइत्ताणं पासित्तए' तथा जैसे चक्षुष्मान भी प्राणी पासमें रहे हुए पदार्थोंको विना विचार किये जान नहीं सकता है, 'जे णं नो पभू उड्ढं स्वाइं अणालोएत्ताणं पासित्तए' तथा उर्ध्वमें रहे हुए पदार्थों को जैसे देखनेकी शक्तिवाला पाणी विना देखे नहीं जान सकता है 'जे णं नो पभू अहे ख्वाइं अणालोइत्ताणं पासित्तए' तथा पासित्तए १२वी शते थक्षु माशन शतिथी युत १५ तेनी सा रहता पार्थ न भवन या विना ५॥ २हित अवस्थामा न तो नथी, जेणं नो पभू मग्गओ रूवाई अणवयक्खित्ताण पासित्तए 12वीरीते शनशस्तिथा યુક્ત જીવે પણ પાછળ રહેલી વરતુને પાછળ નજર કર્યા વિના જોઈ શકતા નથી, जे णं नो पभू पासओ रूवाई अणवलोइत्ता गं पासित्तए । वी शते દર્શનયુક્ત જીવ પાસેના પદાર્થને પણ વિચાર કર્યા વિના જોઇ શકો નથી, 'जे णं नो पभू उड़ रूवाइ अणालाएत्ता णं पासित्तए । यक्षुयुत पाये रडता पाय पाय या विना वी शते भी शत। नथी जेणं नो पभू अहे रूबाइं अणालोएत्ताणं पासिचए ' ज्ञान युत ७५. नाय ५3eी
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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