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________________ ६२० भगवतीसत्रे भते ! मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झित्तए, जाव अंतं करेत्तए, से पूण मंते ! से खीण भोगी.?' हे भदन्त ! परमाधोऽवधिकः परमावधिज्ञानी खलु मनुष्यः यः तेनैव भवग्रहणेन सेद्भु यावत्-बोद्ध मोक्तु परिनिर्वातुं सर्वदुःखानाम् अन्तं कर्तुम् भव्यः योग्यो वतते तत् अथ हे भदन्त ! नूनं निश्चितं स भीणभोगी मनुष्यः विपुलभोगभोगान् भोक्त्तु नो समर्थों वर्तते ? इति प्रश्नः, भगवानाह-' सेसं जहा छउमत्थस्स' शेपं यथा छद्मस्थस्य मनुष्यस्य बक्तव्यतायामुक्त तथैवात्रापि परमावधिज्ञानिमनुष्यविषयेऽपि अवसेयम् । गौतमः पृच्छति-'केवली णं भंते ! मणूसे जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं० ?' हे भदन्त ! केवली खलु मनुष्यो यम्तेनैव भवग्रहणेन सेद्ध यावत्-सर्व दुःखानामन्तं कर्तुं च भव्यः योग्यः, स श्रीणभागी मनुष्यो विपुल अणुस्से जे अदिए तेणेव भवग्गहणेणं लिज्झित्तए जाव अंतं करेत्तए' इत्यादि हे भदन्त ! जो मनुष्य परमावधिज्ञानवाला है और उसी भवसे वह सिद्ध, बुद्ध, सुक्त और परिनिर्वृत्त होकर समस्त दुःखोंका अन्तकरनेवाला है ऐसा वह परमावधिज्ञानवाला मनुष्य क्षीणभोगी होकर क्या विपुल भोगभोगों को भोगने के लिये समर्थ हो सकता है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं कि 'सेसं जहा छउमत्थस्स' जिस प्रकारसे छद्मस्थ मनुष्यकी वक्तव्यतामें हे गौतम ! कहा गया है उसी प्रकार से परभावधिज्ञानीके विषय में भी जानना चाहिये । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'केवली गं भते ! मणूसे जे भविए' इत्या०' हे भदन्त ! केवली मनुष्य जो किसी भवसे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त, एवं समस्त दुःखोंका अन्त करनेके लिये योग्य है भवग्गहणेणं सिज्झित्तए जाव अतं करेत्तए । छत्या महन्त ! न मनुष्य પરમાવધિજ્ઞાની છે અને આ ભવ પૂરો કરીને સિદ્ધ, બુદ્ધ, મુકત અને પરિનિવૃત્ત થર્ડને સમસ્ત દુઃખેને અત કરવાનો છે, તે શુ ક્ષીણભોગી થવાં છતાં વિપુલ ભેગ ભેગને भगवाने समर्थ डाय छे ॥२॥ ? उत्तर 'सेसं जहा छउमत्थस्स । छभस्थ मनुष्य ના વિષે જેવુ કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન પરમાવધિજ્ઞાની વિષે પણ સમજવું गौतम वाभाना प्रश्न - केवली णं भंते ! मणसे जे भविए' त्या ભદન્ત ! કેવળજ્ઞાની મનુષ્ય કે જે આ ભવમાથી જ સિદ્ધ, બુદ્ધ, મુકત, પરિનિર્વત
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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