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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.७ सु.२ कामभोगनिरूपणम् भवन्ति, तेषां कामासंभवात् । गौतमः पृच्छति- कइविहाणं भंते ! कामा पण्णता ? ' हे भदन्त ! कतिविधा · = कियत्मकाराः खलु कामाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-गोयमा! दुविहा कामा पण्णत्ता, तंजहा-सदा य, रूबाय' हे गौतम ! द्विविधा द्विप्रकारकाः कामाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-शब्दाश्च, रूपाणि च । गौतम : पृच्छति-'रूवी भंते ! भोगा, अरूबी भोगा ? ' हे भदन्त ! भोगाः किं रूपिणः सन्ति, अथवा भोगाः अरूपिणः सन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! ख्वी भोगा, णो अरूबी भोगा' हे गौतम ! भोगाः भुज्यन्ते उपभोगविषयीक्रियन्ते शरीरेण इति भोगा: गन्ध-रस-स्पर्शात्मका रूपिणो भवन्ति, तेपां भोगानां पुद्गलधर्मत्वेन मूर्त्तत्वात्, नो अरूपिणो भोगा भवन्ति । गौतमः विता है। अब गौतमम्वामी प्रभुसे पूछते हैं कि 'कइ विहाणं भंते ! कामा । पण्णत्ता' हे भदन्त ! काम कितने प्रकारके कहे गये हैं उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहा कामा पण्णत्ता' काम दो प्रकारके कहे गये हैं। 'तंजहा' जैसे शब्द और रूप । ___ अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'रूवी भंते ! भोगा, अरूवी भोगा' हे भदन्त ! भोगरूपी है ? या अरूपी है इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! रूवी भोगा' णो अरूवी भोगा' भोग रूपी हैं। भोग अरूपी नहीं हैं । जो उपभोगके विषयभूत जोवों द्वारा शरीरसे किये जाते हैं वे भोग हैं ऐसे भोग गन्ध, रस और स्पर्शात्मक हैं और ये रूपी हैं। क्यों कि ये भोग पुदगल के धर्म हैं । इसलिये ये मूर्तिक हैं । भोग अरूपी नहीं होते हैं । કામના કારણેનો સદુભાવ છમાજ હેય છે અછમાં સંભવી શકતું નથી અજીવોમા તે કામને સદભાવ જ અસભવિત છે.
गौतम स्वामीनी प्रश्न 'कइविहाणं भंते ! कामा पण्णत्ता ?' हे महन्त आम 21 Rai xei ? उत्तर 'दविहा कामा पण्णता' हे गौतम ! मना मे ४२ या छ. ' तंजहा भ3 (१) २०४ अने. (२) ३५.
वे गौतम स्वामी लोगन विषे नो पूछे छे 'ख्वी भंते भोगा अरूवी भोगा' मतपथी छे स३थी छ ? उत्त२ ‘गोयमा' हे गौतम ! रुवी भोगा णो अची भोगा' । ३५ छ, अ३५ी नथी
જે ઉપગને વિષયભૂત જીવે દ્વારા શરીરથી કરાય છે, તેમને ભોગ કહેવાય છે, એવા ભેગ ગંધ, રસ અને સ્પર્શામક હોય છે અને તેઓ રૂપી હોય છે, કારણ કે તે ભેગ પુલના ધર્મ છે, તેથી જ તેમને રૂપી કહ્યા છે અરૂપી કહ્યા નથી