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भगवतीमत्रे प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! पञ्चविधाः कामभोगा:मज्ञप्ताः, तद्यथा-शब्दाः, रूपाणि, गन्धाः, रसाः, स्पर्शाः, । जीवाः खलु भदन्त ! कि कामिनः, भोगिनः ? गौतम ! जीवाः कामिनोऽपि, भोगिनोऽपि । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते जीवाः कामिनोऽपि, भोगिनोऽपि ? गौतम ! श्रोत्रेन्द्रियचक्षुरिन्द्रिये प्रतीत्य कामिनः, घ्राणेन्द्रिय-जिवेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रियाणि प्रतीत्य भोगिनः, तत् तेनार्थेन गौतम ! भंते ! कामभोगा पण्णत्ता) हे भदन्त ! कामभोग कितने प्रकार के कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (पंचविहा कामभोगा पण्णत्ता) कामभोग पांच प्रकारके कहे गये हैं । (तंजहा) वे इस प्रकारसे हैं (सहा, रूबा, गंधा, रसा, कासा) शब्द, रूप, गंध, रम और स्पर्श। (जीवो णं भंते ! किं कामी, भोगी?) हे भदन्त ! जीव क्या कामी हैं कि भोगी हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (जीवा कामी वि भोगी वि) जीव कासी भी हैं और भोगी भी हैं। (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ, जीवा कामी वि,) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारणसे कहते है कि जीवकामी भी हैं और भोगी भी हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सोइदियचविखदियाई पड्डुच्च कामी, घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाइ पडुच्च भोगी, से तेणटेणं गोयमा ! जाव भोगी वि) श्रोत्रेन्द्रिय
और चक्षुइन्द्रियको आश्रय करके जीव कामी कहलाते हैं, घ्राणइन्द्रिय, जिवाइन्द्रिय और स्पर्शइन्द्रियको आश्रय करके जीव भोगी कहलाते ३८४ा २ना ४ा छ ? (गोयमा ! पंचविहा कामभोगा पण्णत्ता) हे गौतम ! ४भा पाय ५१२ना ४था छे. (तंजहा) ते पांय ४२ मा प्रभारी -(सदा, रूवा; गंधा, रसा, फासा) (१) २८, (२) ३५, (3) आध, (४) २१ भने (५) २५० (जीवाणं भंते ! कि कामी. भोगी) गौतम! 4 शुभी डा छ, लगा डाय छ ? (गोयमा !) गौतम। (जीवा कामी वि. भोगी वि)
भी ५५४ सय छ भने all पर डाय छे. (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, जीवा कामी वि भोगी वि) : Merd ! मा५ । अरहो मे ४i छ। 3 0१॥
भी ५५ उय छ भने ली ५५ ५ छ ? (गोयमा !) गौतम! (सोइंदिय, चक्खिदियाइं पडुच्च कामी, घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाइं पड्डुच्च भोगी, स तेणटेणं गायमा ! जाव भोगी वि) श्रोत्रन्द्रिय सने यान्द्रियनी अपेक्षा છ કામી કહેવાય છે, અને ઘણેન્દ્રિય, સ્વાદેન્દ્રિય અને સ્પર્શેન્દ્રિયની અપેક્ષાઓ ને