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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. ७ मू. २ कामभोगनिरूपणम् ५९५ यावत्-भोगिनोऽपि । नैरयिकाः खलु भदन्त ! किं कामिनः, भोगिनः ? एवमेव । एवम् असुरकुमारा यावत्-स्तनितकुमाराः । पृथिवीकायिकानां पृच्छा ? गौतम ! पृथिवीकायिकाः नो कामिनः, भोगिनः। तत्केनार्थन यावत्-भोगिनः ? गौतम ! स्पर्शेन्द्रियं प्रतीत्य, तत् तेनार्थेन यावत्-भोगिनः । एवं यावत्-वनस्पतिकायिकाः । द्वीन्द्रियाः एवमेव नवरं-जिह्वेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रिये प्रतीत्य भोगिन । त्रीन्द्रिया अपि एवमेव, नवरं-घ्राणेन्द्रिय-जिड्वेन्द्रियहैं । इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं । 'नेरझ्या णं भंते ! कि कामी भोगी ? हे भदन्त । नारकजीव क्या कामी हैं या भोगी हैं ? [एवं चेव एवं जाव थणियकुमारा] हे गौतम ! जैसा पहिले कहा है वैसा ही जानना चाहिये इसी तरह से यावत् स्तनितकुमारों के भी जानना चाहिये । (पुढविकाझ्याणं पुच्छा) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक क्या कामी हैं कि, भोगी हैं ? [पुढविकाइया णों कामी, भोगी] हे गौतम ! पृथिवीकायिक कामी नहीं हैं भोगी हैं [से केणद्वेण जाव भोगी हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि पृथिवीकायिक कामी नहीं हैं, भोगी हैं ? [ीयमा! फासिंदियं पडुच्च से तेणटेणं जाव भोगी] हे गौतम ! स्पर्शन इन्द्रिय को आश्रित करके मैने ऐसा कहा है कि पृथिवीकायिक कामी नहीं हैं भोगी हैं । [एव जाव वणस्सइ काइया, वेइंदिया एव चेव, नवरं जिभिदियफासिंदियाइं पडुच्च भोगी] ભેગી કહેવાય છે હે ગૌતમ ! તે કારણે મે એવું કહ્યું છે કે જો કામી પણ હોય છે, भने मा ५ सय (नेरडयाणं भंते ! किं कामो, भोगी ?) B HE-TI ना? शु भी उय छ साना हाय छ ? (एवं चेव, एवं जाव थणियकुमारा) હે ગૌતમ! તેમના વિષયમાં પણ સામાન્ય જીવોના જેવું જ કથન સમજવુ સ્વનિતકુમાર सुधाना वाना विषयमा पार मेधुं १ ४थन सभाबु (पुढविकाइयाणं पुच्छा)
महन्त ! पृथ्वीजयी भी छ, मा ? (पुढ विकाइया णो कामी, मोगी) उ गौतम ! पृथ्वीयि? मी नथी, पर तेसो मागी छे (से केणटणं जाव भोगी?) હે ભદન્ત ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે પૃથ્વીકાયિકે કામી હતા નથી પણ लागी हाय छ ? (गोयमा ! फार्सिदिय पडुच्च-से तेणद्रेणं जाव भोगी) હે ગૌતમ! પૃથ્વીકાયિકમા સ્પર્શેન્દ્રિયને સદૂભાવ હોય છે હે ગૌતમ! સ્પર્શેન્દ્રિયના સભાવની અપેક્ષાએ મેં એવું કહ્યું છે કે પૃથ્વીકાચિકે કામાં નથી, પણ ભેગી છે (एवं जाव वणस्सइकाइया, वेइंदिया एवं चेव, णवरं जिभिदियफासि दिय