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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. ६ सू. २ कामभोगनिरूपणम् ५९३ भोगा' । सचित्ताः भदन्त ! भोगाः, अचित्ताः भोगाः? गौतम ! सचित्ता अपि भोगाः, अचित्ता अपि भोगाः। जीवाः खलु भदन्त ! भोगाः? पृच्छा, गौतम ! जीवा अपि भोगाः अजीवा अपि भोगाः । जीवानां भदन्त ! भोगाः अजीवानां भोगाः? गौतम ! जीवानां भोगाः, नो अजीवानां भोगाः। कतिविधाः खलु भदन्त ! भोगाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! त्रिविधाः भोगाः प्रज्ञप्ताः? तद्यथा- गन्धा, रसाः, स्पर्शाः। कतिविधाः खलु भदन्त ! कामभोगाः (सचित्ता भंते भोगा, अचित्ता भोगा) हे भदन्त ! भोग सचित्त हैं कि भोग अचित्त हैं ? (गोयमा ! सचित्ता वि भोगा, अचित्ता वि भोगा) हे गौतम ! लोग सचित्त भी हैं और भोग अचित्त भी हैं। (जीवा णं भंते ! भोगा पुच्छा ?) हे भदन्त ! भोग जीवरूप हैं कि भोग अजीवरूप हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (जीवा वि भोगा, अजीवा वि मोगा) भोगजीवरूप भी हैं और भोग अजीवरूप भी हैं। (जीवा णं भंते ! भोगा, अजीवाण भोगा) हे भदन्त ! भोग जीवोंके होते हैं कि भोग अजीवोंके होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (जीवाणं भोगा, नो अजीवाणं भोगा) भोग जीवोंके होते हैं, भोग अजीवों के नहीं होते हैं । (कद विहा ग मते ! भोगा पण्णत्ता' हे अदन्त ! भोग कितने प्रकार के कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (तिविहा भोगा पण्णत्ता) भोग तीन प्रकारके कहे गये हैं । (तं जहा) वे इस प्रकारसे हैं (गंधा, रसा, फासा) गंध, रस और स्पर्श । (कविहाणं (सचित्ता भंते भोगा, अचित्ता भागा) महन्त । ला सथित्त छ है मा मायत्त छे ? ( गोयमा ) सचित्ता वि भोगा अचिता वि भोगा) उ गौतम I सथित्त पर छ मने लामयित्त पछे (जीवाणं भते? भोगा पुच्छा ) महन्त ! १३५ छे, 3 1 0३५ छ ? (गोयमा !) 3 गौतम । (जीवा वि भोगा, अजीवा वि भोगा) an ७१३५ ५४ छ भने २०१३५ प छ (जीवाणं भंते ! भोगा, अजीवाणं भोगा) HErd! मगन सहमा वामा डाय, 20वमा डाय छ १ (गोयमा ! जीवाणं सोगा, जो अजीवाणं भोगा) र गौतम । मागनी समाप वोमा उय छे, मळवमा मागता सहमा हात नथी (कइ विहाणं भंते ! भोगा षण्णता ?) 3 महन्त ! an 2 HRना या छ ? (गोयमा ! तिविहा मोगा पण्णत्ता-तंजहा) के गौतम । लोगना नी-ये प्रमाणे त्र ॥२ ५४ - (गंधा, रसा, फासा) (१) 14, (२) २४ भने (3) २५श (कड विहाणं भंते ! कामभोगा पण्णता ?) BErd ! माग