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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७उ.म.५ भाविभरतक्षेत्रीयमनुष्याहारनिरूपणम् ५७५ कङ्काः, विलका, मद्गुकाः, शिखिनः निःशीलाः तथैव यावत् अवसन्नं नरकतिर्यग्योनिकेषु उत्पत्स्यन्ते । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति' ॥सू० ५॥
टीका-'ते णं भंते ! मणुया कं आहारं आहारेंति ?' गौतमः पृच्छतिहे भदन्त ! ते खलु भाविनो मनुष्याः कम् आहारम् आहरिष्यन्ति ? ढंका, कंका विलका, मदुगा, सिही, निस्सीला, तहेव जाव.) हे भदन्त ! वे काग, कंक, विलक, जलवायस, मयूर ये सब पूर्वोक्त रूपसे निःशील आदि विशेषणों वाले बने रहकर यावत् मर कर के कहां उत्पन्न होंगे ! (ओसन्नं नरगतिरिक्ख जोणिएमु उववज्जिहिति) हे गौतम ! ये सब प्रायः नरक और तिर्यंच योनियों में उत्पन्न होंगे। (सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) हे भदन्त ! आपने जो यह सब कहा है वह सर्वथा सत्य है। हे भदन्त ! आपने जो यह सब कहा है वह सर्वथा सत्य है। ऐसा कह कर गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये।
टीकार्थ-यहां पर भावि भरतक्षेत्र अर्थात् अवसर्पिणी के छट्टे आरे के मनुष्यों का अधिकार चल रहा है-मो इसी संबंध को लेकर सूत्रकार ने उनके विशेष आहार के विषय में कथन किया है। इसमें गौतम ने उनसे ऐसा पूछा है-(तेणं भंते ! मणुया के आहारं आहारेहिति) हे भदन्त ! अवसर्पिणी काल के छठे आरे के वे मनुष्य कैसा
आहार करेंगे ? इसके उत्तर में प्रभुने ऐसा कहा कि-'गोयमा' हे विलका, मददगा सिही निस्सीला तहेव जाव) महन्त ते गडा, ४, विलय, -જળવાયસ, મયૂર આદિ પૂર્વોતરૂપે શીલરહિત આદિ વિશેષણવાળા બનીને મરણ पाभान या उत्पन्न थरी ? (ओसन्न नरगतिरिक्खजोणिएम उववज्जिहिति) है गौतम तमा सामान्य शेते न२४ भने तिय २२ गतिमा पन यश (सेवं भंते ! सेवते ति) “मन्त ! सारे ते सपथा सत्य छ " HE-त! माघे આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે સર્વથા સત્ય જ છે એવું કહીને, પ્રભુને વંદના નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી પિતાને સ્થાને બેસી ગયા.
ટીકાથઅવસર્પિણુકાળના છઠ્ઠા આરામાં ભરતક્ષેત્રના મનુષ્યાનું સ્વરૂપ કેવું હશે તે સૂત્રકારે પ્રકટ કર્યું હવે આ સૂત્રમાં તેમના આહારનું કથન કરવામાં આવે છે गौतम स्वामी महावीर प्रसुने । प्रश्न पछे छ ? " तेणं भंते मणुया क आहारं आहारेहिति ! " महन्त ! सक्स िजना छ माराना ते मनुष्यो । माहार २श १ ते त्तर मापता महावीर ४ छ है " गोयमा ! गौतम !