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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७३.६ सू.१ नैरयिकाणां आयुर्वधादिस्वरूपनिरूपणम् ५१७ नैरयिकायुष्कं प्रकरोति बध्नाति ? अथवा-'उचवज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ नारके उपपद्यमानः जायमानः किम् नैरयिकायुष्कं प्रकरोति ? वनाति अथवा 'उचवन्ने नेरइयाउयं पक़रेइ ?' नारके उपपन्नः उत्पन्नो भूत्वा नैरयिकायुष्कं प्रकरोतिबध्नाति ? भगवानाह'-गोयमा ! इहगए नेरइयाउयं पकरेइ' हे गौतम ! इहगतः मनुष्यभवे तिर्यगभवे वा स्थित एव स नैरयिकायुष्कं प्रकरोति, जो उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ' नो उपपद्यमानः नारके जायमानः नैरयिकायुष्कं प्रकरोति, 'णो उववन्ने नेरइयाउयं पकरेड' नो उपपन्नः नारके उत्पन्नो भूत्वा नैरयिकायुष्कं प्रकरोति । एवं असुरकुमारेसु वि' इसी भवमें रहता हुआ मनुष्यभवमें या तिर्यग्र अवमें स्थित बना हुआ नरयिक आयुका बंध करता है ? अथवा 'उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ' नारकमें उत्पन्न होते प्रमाण ही नारकायुका बंध करता है ? था 'उववन्ने नेरइयाउयं पकरेइ' नारकमें उत्पन्न होकर फिर नैरयिकायुष्कका यंध करता है ? इसके उत्तरमें प्रभु उनसे कहते है कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'इहगए नेरझ्याउयं पकरेइ' जो जीव नारक पर्यायसे उत्पन्न होता हैऐसा जिस भवमें वह वर्तमान है, उसी अवमें रहकर नारको उत्पन्न होने योग्य आयुकावध करता है । ऐसा नहीं है कि मनुष्य या तिर्यंच भवको छोडकर वह नारको उत्पन्न होते ही फिर नारककी आयुका बंध करे या वहां उत्पन्न होकर बादमें नारककी आयुका बध करे ! यही बात 'णो उववज्जमाणे नेरइयाउय पकरेइ, णो उववन्ने नेरइयाउयं पकरेई' इनपदों द्वारा प्रभुने गौतमको सभा हे हाय त्या३ ४ शुना२युनो म ४२ छ ? अथवा 'उववज्जमाणे नेरइयाउयंपकरेइ ' नाम जपन्न यतांनी सा2 ,नायुनी ५४२ ? अथवा उपचन्ने नेरइयाउयं पकरेइ । न२४मा सन 2या पछी ना२युनो ५५ ४२ छ ? ते उत्तर मापता महावीर प्रमुछे - 'गोयमा !', गौतम! 'इहगए नेरइयाउय पकरेइरे ना२४ पर्यायमा,त्पन्न यवान योग्य डाय छे, तेव જે ભાવમાં રહેલો હોય છે એજ ભાવમાં રહેતા રહેતા નારકમાં ઉત્પન્ન થવા આયુનો (નારકાયુનો) બધ કરે છેમનુષ્ય અથવા તિર્યંચને ભવ છોડીને નારકમાં ઉત્પન્ન થતા જ તે નારકેન બ ધ બાધ નથી, અથવા નરકગતિમાં ઉત્પન્ન થઈ ગયા पछी ५ ते ना२युनी १५ ते नथी मे वात,' णो उपचज्जमाणे नेरइयाउन पकरेइ, णो उववन्ने नेरझ्याउयं पकरेइ' मा सूत्रां द्वारा मडावीर प्रभुन्ने
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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