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________________ 19 ४७४ भगवतीस चा निर्जरयन्ति न तदेव वेदयन्ति । गौतमः पृच्छति - 'से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्च जात्र नो तं वेदेति ?' हे सदन्त ! तत् केनार्थेन एव मुच्यते य तं यावत्यत् वेदयन्ति न तद् निर्जरयन्ति तद् वेदयन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! कम्मं वेदेति, नो कम्म निज्जरेंति' हे गौतम । कर्मवेदयन्ति नो कर्म निर्जरयन्ति तदुपसंहरति-से तेणट्टेणं गोयमा ! जाव नो तं वेदेंति' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन वेदनानिर्जरयोर्विभिन्नविपयरूपतया यावत् यद् वेदयन्ति न तद् निर्जरयन्ति यद् निर्जरयन्ति न तद् वेदयन्ति एवं , जिस समय कर्म की निर्जरा होती है उस समय कर्मका वेदन नहीं होता है क्यों कि निर्जराका काल और कर्म के वेदनकाकाल भिन्नर कहा गया है। इसी बात को गौतम प्रभुसे पूछते हैं कि 'से के भते ! एव चुच्च जाव णो तं वेदेति' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जिस जिस कर्मका वेदन करते हैं वे उसकी निर्जरा नहीं करते हैं और जिस कर्मका वे निर्जरा करते हैं, उस कर्मका वेदन नहीं करते है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोमा' हे गौतम! 'कम्मं वेदेति, ना कम्म निज्जरेंति' जीव कर्मका तो वेदन करते है और नाकर्म को वे निर्जरा करते हैं। से तेणद्वेणं' इस कारण 'गोयमा' हे गौतम ! 'जीव नो तं वेदेति' 'वेदना और निर्जरामें भिन्न विषयरूपता होनेके कारण जीव जिस कर्मका वेदन करते हैं उसी कर्म की वे निर्जरा नहीं करते हैं और जिसकर्म की निर्जरा करते हैं उसी कर्मका वे वेदन नहीं करते हैं । ' एवं नेरઅને કર્મોના વેદનના કાળ ભિન્ન ભિન્ન કહેલ છે એ જ વાતને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી महावीर प्रभुने पूछे छे है 'से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ जाव णो तं वेदेति' ? હે ભદન્ત! એવું આપ શા કારણે કડા છે કે જીવા જે કર્મોનુ વેદન કરે છે. તે કમની નિરા કરતા નથી, અને તે જે કર્મોની નિરશ કરે છે. તેનુ વેદન કરતા નથી ? उत्तर- 'गोयमा !' हे गौतम । कम्मं वेदेति, नो कम्मं निज्जरेंति व मनु वेदन ४२ छे याने नोडर्मनी तेरमो निर्भरा रे छे. 'से तेणट्टेण गोयमा !' हे गौतम! ते 'जान नो तं वेदेति' में वेदना અને નિર્જરામા ભિન્ન વિષયરૂપતા હેાવાથી જીવા જે કર્માંનુ વેદન કરે છે, એ જ ક'ની નિરા કરતા નથી, અને તેએ જે કમની નિર્જરા કરે છે, એ જ ક`તું. વેદન કરતા नयी. या विषयनुं वधु स्पष्ट उपर अश्वामा आव्यु छे. ' एवं नेरइया त्रि
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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