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________________ अमेयचन्द्रिकाटीका श. ७३.३.४ कृष्णलेश्यादेःकर्मणामल्पमहत्वनिरूपणम् ४५३ एव सद्भावेन अन्यलेश्यासापेक्षस्य अल्पकर्मवत्वस्य महाकर्मवत्वस्य चासंभवात् । गौतमः पृच्छति-'जाव-सिय भंते ! पम्हलेस्से वेमाणिए अप्पकम्मतराए, मुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतराए ? हे भदन्त ! यावत्-स्यात् कदाचित् किं पद्मलेश्यो वैमानिकः अल्पकर्मतरो भवेत् , अथ च कदाचित् शुक्ललेश्यो वैमानिको महाकर्मतरो भवेत् ? यावत्करणात कृष्ण-नील-कापोतलेश्यावतामपि भवनपतिव्यन्तराणां मध्ये पूर्वपूर्वलेश्यावतोऽल्पकर्मतरत्वम् उत्तरोत्तरलेश्यावतो महाकर्मतरत्वं संग्राह्यम् । भगवानाह-'हंता, सिया' हे गौतम ! इन्त, सत्यम् यावत्-पद्मलेझ्यो वैमानिकः कदाचित् अल्पकर्मतरः, कदाचित् शुक्ललेश्यो वैमानिकश्च महाकर्मतरो भवेत् । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति'से केणटेणं ?' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन कथं तावत् शुक्ललेश्यापेक्षया इसलिये अन्यलेश्या सापेक्ष अल्पकर्मवत्ता की और महाकर्मवत्ता की असंभवता रहती है। - अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'जाव सिय भंते ! पम्हलेस्से वेमाणिए अप्पकम्मतराए, सुक्कलेस्से वेमाणिए महा. कम्मतराए । हे भदन्त! क्या ऐसी बात मानी जा सकती है कि पद्मलेश्यावाला वैमानिक देव अल्पकर्मा हो और शुक्ललेश्यावाला वैमानिक देव महाकर्मा हो यहाँ यावत् शब्द से कृष्ण, नील और कापोरलेश्यावाले भी भवनपति और व्यन्तरों के बीच में पूर्व २ लेश्यावालों में अल्पकर्मता और उत्तरोत्तर लेश्यावालों में महाकर्मता ग्रहण की गई है। इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते है कि 'हंता सिया' हां गौतम! ऐसा होता है कि पद्मलेश्यावाला वैमानिक देव कदाचित् अल्पकर्मा होता है और --कदाचित् शुक्ललेश्यावाला वैमानिक देव महाकर्मा होता है । अब गौतम इस व गौतम स्पा मेवा प्रश्न पूछे छे , 'जाव सिय भंते ! पम्हलेस्से वेमाणिए अप्पकम्मतराए, सुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतगए ?" महन्त ! શું એવું સંભવી શકે છે કે પદ્મલેફ્સાવાળે વૈમાનિક દેવ મહાકર્મા હોય છે? અહીં 'जा' (पर्य-त ५६ ६२ ], नी भने पात वेश्यावा वैभानिमा પૂર્વ પૂર્વની વેશ્યાવાળાઓ કરતા ઉત્તરોત્તર વેશ્યાવાળાની અપેક્ષાઓ પૂર્વ પૂર્વની લેસ્યાવાળામાં અલ્પકર્માતા સંભવી શકે છે, એમ સમજવું. गौतम स्वामीना न वा मापता महावीर प्रभु छ- 'हंता. सिया' હા, ગૌતમ! એવું સંભવી શકે છે કે પંલેશ્યાવાળો વૈમાનિક દેવ કયારેક અલ્પકર્મા હોઈ શકે છે અને શુકલ લેસ્યાવાળો વૈમાનિક દેવ કયારેક મહાકર્મા હોઈ શકે છે.
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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