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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. १ सृ. ६ अकर्म जीवगतिस्वरूपनिरूपणम् २९१ गौतमः पुनः पृच्छति - 'कं णं भंते ! बंधन छेदणयाए अकम्मल गई पण्णायइ ?' हे भदन्त ! कथं कया रीत्या खलु बन्धनच्छेदनतया कर्मबन्धच्छेदनेन अकर्मणः कर्मरहितस्य जीवस्य गतिः प्रज्ञाप्यते - कथ्यते ?, भगवानाह - 'गोयमा ! से जहा नामए कलसिंबलिया इवा' हे गौतम! तद्यथानामेति वाक्यालङ्कारे कलशिम्बलिका कलाय (मटर) धान्यफलिका इति वा, वा=अथवा 'मुग्गसिंवलिया इवा' मुद्गशिम्बलिका मुद्गफलिका इति वा, वा=अथवा 'मास सिंवलिया इवा' माषशिम्बलिका 'उडद' इति भाषाप्रसिद्धधान्यफलिका इति वा चा= अथवा ' सिंवलिसिंबलिया इवा शाल्मलिशिम्बलिका इति वा शाल्मलिः = वृक्षविशेषः, तस्य फलिका, वा = अथवा ' एरंडर्मिजिया इवा' एरण्डमिञ्जिका इति वा, - एरण्डफल्म् । 'उहे दिना सुक्का समाणी फुडित्ताणं एगंतमंतं गच्छ ' उष्णे सूर्यतापे दत्ता शुष्का सती स्फुटित्वा = विदीर्य खलु उच्छलिता सती एकान्तम् झटित्येव अन्तं पृथिव्याः एकमदेशं गच्छति, तथाविध , अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'कहं णं भंते ! बधणळेपणयाए अकम्मस्स गई पण्णायई' हे भदन्त ! कर्मबंधके छेद होजाने से कर्मरहित हुए जीवकी गति कैसे होती है ? अर्थात् किस प्रकार से ऐसे जीवकी गति कही गई ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि 'गोयना' हे गौतम ! 'से जहानामए कलसिंबलियाइ वा' कलायधान्यफलिका-मटरकी फली अथवा 'मुग्गसिंबलिया वा मुदशिम्बलिका मुंगकी फली, अथवा 'माससिंबलियाह वा' उडदकी कोश फली, अथवा 'सिंवलिसिबलिया वा' शाल्मलिशिम्बलिका शाल्मलि वृक्षविशेष की फली, अथवा 'एरंडमिंजियाइ वा' एरण्डमिञ्जका एरण्डकी फली 'उन्हे दिना सुक्का समाणी फुडित्ताणं एगंतमंत गच्छइ' धूपमें जब रहती हुई बिलकुल पककर सुखजाती है तब वह 6 હવે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને પૂછે છે કે- ' कहं णं भंते! बंधण छेrणयाए कम्मर गई पण्णाय ?' डे अहन्त ! उर्भ हा नवाथी उर्भरहित થયેલા જીવની ગતિ કેવી હોય છે ? તેના ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે 'गोयमा !' हे गौतम! से जहा नामए कलसिंवलियाइ वा वटानी रेजी सिंग, अथवा 'मुग्गसिंबलिया वा' भगनी सिंग अथवा माससिंबलियाई वा ' मउहनी सिंग, अथवा 'सिवली सिंवलियाई वा' शादभति वृक्षनी सिंग, अथवा 'एरंडमिंजियाइ वा' मेरउभिनिठा - भेरंडी ' उण्हे दिना सुका समाणी फुडिचाणं एगंतमंतं गच्छई' तडभभां रहने न्यारे जिसस सुमर्ध लय हो
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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