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________________ २६८ भगवती सूत्रे + अन्यतरं त्रस प्राणिनं विहिंस्यात्, स खलु भदन्त । तद्व्रतम् अतिचरति ? नायमर्थः समर्थः, न खलु स तस्य अतिपाताय आवर्तते । श्रमणोपासकस्य खलु भदन्त ! पूर्वमेव वनस्पतिसमारम्भः प्रत्याख्यातः, स च पृथिवीं खनन् अन्यतरस्य वृक्षस्य मूलं छिन्द्यात्, स खलु भदन्त । तद् व्रतम् अतिचरति ? नायमर्थः समर्थः, न खलु स तस्य अतिपाताय आवर्तते । ॥ ५०४ ॥ समय किसी एक त्रस जीवका वध हो जाता है तो क्या वह श्रावक जो की हिसा नहीं करनेरूप अपने व्रतमें अतिचार लगता है ? ( णो णट्टे समट्टे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं ( णो खलु से तस्स अतिवायाएं आउछ ) अर्थात् असावधानताके कारण हुआ वह संबंध उस श्रावकके सहिंसात्यागरूपव्रतका खण्डन नहीं करता है । (समणोवासगस्स णं अंते ! पुच्चामेव वणस्स समारंभे पच्चक्खाए, से य पुढविखणमाणे अण्णयरस्स रुक्खस्स मूलं छिंदेज्जा से णं भंते ! तं वयं अइचरह) हे भदन्त ! जो श्रमणोपासक श्रावक पहिले से वनस्पतिकायिक जीवके वध कर - का त्याग कर देता है, उससे यदि पृथिवीको खोदते समय असावधानीसे किसी एक वृक्षका जड कटजाती है, तो क्या वह कार्य उस वनस्पति कायिक जीवके वध नहीं करने पर गृहीत व्रतका खण्डन कर्त्ता माना जायगा ? (णो इण्ट्ठे समट्टे णो खलु से तस्सं अइवायाए आउट) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् કરવાના જે પ્રવાખ્યાન કર્યાં હતા તેમાં (તે વ્રતમાં) શું અતિચાર (દોષ) લાગે છે? ( णो इट्ठे सभ) हे गौतम । मेवं जनतु नथी. ( णो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टइ) असावधानताने अरहो थये। ते कवनो वध ते श्रावना त्रसवनी हिंसानात्याग३य व्रतनु · अउन उरतो नथी. (समणोवासगस्स णं भंते ! पुत्रामेव वगस्स समारंभे पच्चक्खाए, से य पुढत्रिं खणमाणे अण्णयरस्स् रुक्खस्स मूलं छिंदेज्जा - से णं भंते! तं वयं अइचरई ? ) हे महन्त ! ? श्रमोपासक श्रावेडे પહેલેથી જ વનસ્પતિકાયિક જીવની હિંસાના પરિત્યાગ કર્યાં હાય, એવા શ્રાવક વડે પૃથ્વીને ખેાદતાં ખાદતા કાષ્ઠ વૃક્ષનુ મૂળ કપાઈ જાય તે શું તેણે વનસ્પતિકાયિકાની हिसा न श्वानु ने व्रत सीधु छे तेनु खंडन थशे ? ( णो इणट्ठे समट्ठे - णो खलु से तस्स अवायाए आउट्टई) हे गौतम! मे जनतु नथो असावधानतार्थी ते વૃક્ષનુ મૂળ છેદાઈ જવાથી તે શ્રમણેાપાસકના વનસ્પતિકાયિકાની હિંસાના પરિત્યાગરૂપ વ્રતનું ખંડન થતું નથી
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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