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भगवती सूत्रे
सामाइयकडस्स
माणस्स' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! श्रमणोपासकस्य श्रावकस्य खलु सामायिककृतस्य कृतसामायिकस्य श्रमणोपाश्रये आसीनस्य साघु वसतौ तिष्ठतः ' तस्स णं भंते! किं इरिया चहिया किरिया कज्जइ ?' तस्य खल्लु श्रावकस्य हे भदन्त ! किम् ऐर्यापथिकी केवलयोगमत्यया उपशान्तमोहक्षीणमोह-सयोगि केवल पत्रयस्य सातावेदनीयवन्धस्वरूपा योगनिमित्ता स्पन्दनचलनादि जन्या क्रिया क्रियते भवति ? अथवा ' संपराइया किरिया कज्जइ ?' किं सांपरायिकी क्रिया संपरायाः कपायाः तेषु भवा सांपरायिकी ऐसा पूछा है कि 'समणोवासयस्स णं भंते ! समणोवस्सए अच्छमाणस्स' हे भदन्त ! ऐसा कोट श्रमणोपासक श्रावक है कि जिसने सामायिक कर लिया है और उपाश्रय में बैठा हुआ हे तस्स णं भंते ! किं इरियावहिया किंरिया कज्जइ' ऐसे उस श्रावकको हे भदन्त ! क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है ? अथवा 'संपराइया किरिया कज्ज' सॉपरायिकी क्रिया लगती है ? ऐर्यापथिकी क्रिया केवल योगनिमित्तक ही होती है और यह क्रिया ग्यारहवें बारहवें और तेरहवें गुणस्थानवालों के होती है इन आत्माओंके सिर्फ कषायके अभाव हो जानेसे सातावेदनीय कर्म का ही बंध होता है इसलिये यह क्रिया सातावेदनीय कर्मके बन्धस्वरूप होती है । इसका कारण योग होता है, एवं यह स्पन्दन, चलन आदिसे जन्य होती । है । यहां 'कज्जह' इस क्रियापदका अर्थ 'लगती है' ऐसा है । सांपरायिकी क्रिया वह है जो कपायके निमित्त से होती है । संपराय नाम कषायों का है इन कषायों के होने पर कर्म के बध की कारणभूत स्वाभी महावीर प्रभुने मेवा प्रश्न पूछे छे 'समणोवासयस्स णं भंते! सामाइयकूडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स ' हे महत ! श्रेष्ठ वा श्रमास छे! સામાયિક કરી છે અને उपाश्रयमा मे ेटो। छे, — तस्सणं भंते । किं इरियावहिया किरिया कज्जड ' मेवा ते श्रमास (श्रड) ने शु भैर्यार्याथडी झिया सागे छे ? " संपराइया किरिया कइ ? ' सांपरायिडी दिया लागे छे ? मेर्याथथिडी डिया डेवण योगનિમિત્તક જ હાય છે . આ ક્રિયા અગિયારમા, ખારમા, અને તેરમાં ગુણુસ્થાનવાળા જીવાજ કરેછે. આ આત્માઓના કષાયના અભાવ થઇ જવાથી તેમને તેા કેવળ સાતાવેન્દ્રીય કર્મના જ મધ થાય છે. તેથી તે ક્રિયા સાતાવેદનીય કર્મીના અધસ્વરૂપ હોય છે. તેનું કારણુ ચેગ होय, ते स्थन्छन्, भन यहि द्वारा कन्य होय हे सही 'कज्जइ' એટલે ‘લાગે છે’ એવા અર્થ સમજવે, જે ક્રિયા કષાયને નિમિત્ત્વે થાય છે તે ક્રિયાને સાંપરાચિઠ્ઠી ક્રિયા કહે છે. કષાયાને જ સ’પરાય’ કહે છે. આ કષાયાને જ્યારે સદ્ભાવ