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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.१ म.३ श्रमणोंपासकक्रियास्वरूपनिरूपणम् २६३ सामायिककृतस्य श्रमणोपाश्रये आसीनस्य आत्मा अधिकरणी भवति, आत्माधिकरण-प्रत्ययं च खलु तस्य नो ऐपिथिकी क्रिया क्रियते, सांपरायिकी क्रियाक्रियते तत् तेनार्थेन यावत्-सांपरायिकी० ।। सू. ३॥ टीका-पूर्वम् 'अंतं करेइ' इत्यनेन क्रिया प्रोक्ता, क्रियायुक्तश्च श्रमणोपासको भवतीति-श्रमणोपासकवक्तव्यतामाइ-'समणोवासयस्स णं भंते ।" इत्यादि । समणोवासयस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवम्सए अच्छकहते हैं कि उस श्रावकको ऐपिथिकी क्रिया नहीं लगती है, सांपरायिकी क्रिया लगती है ? (गोयमा) हे गौतम ! (समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स आया अहिंगरणी भवइ आयाहिगरणवत्तियं च णं तस्स णो इरिगावहिया किरिया कन्जइ, संपगइया किरिया कजइ से तेण?णं जाव संपराइया) श्रमणोपासकका कि जो सामायिक करचुका है और साधुवसतिरूप उपाश्रय में बैठा हुआ है आत्मा अधिकरणी कषायवाला होता है और कषाय युक्त आत्मावाला होने के कारण उस श्रावकको ऐापथिकी क्रिया नहीं लगती है, किन्तु सांपरायिकी क्रिया ही लगती हैं। इस कारण हे गौतम! मैने ऐसा कहा है कि उसश्रावक को यावत सांपरायिकी क्रिया लगती है। टीकार्थ-अभी अभी 'अंतं करेइ' इस पद द्वारा क्रिया कही गई है क्रियायुक्त श्रमणोपासक श्रावक होता है इस कारण श्रमणोपासककी वक्तव्यता इस सूत्रद्वारा सूत्रकार कह रहे हैं इसमें गौतमने प्रभुसे श्रावने माथि छिया and नथी, 4 सपयिही जिया मागे ? (गोयमा) गीतम! (समणोवासयम्स णं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स आया अहिंगरणी भवइ, आयाहिगरणवत्तियं च णं तस्स णो इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ, से तेणतुणं जाव स पराइया) શ્રમ પાસક કે જે સામાયિક કરી ચૂક્યો છે અને સાધુના રહેઠાણુરૂપ ઉપાશ્રયમાં मेटेको छ, तना मात्मा मधि:२० (अधि:२५ युत)-४षायवाणी - होय छ, मन કષાયયુકત આત્માવાળે હેવાથી તે શ્રાવકને એર્યાપથિકી ક્રિયા લાગતી નથી, પણ સાપરાયિકી ક્રિયાજ લાગે છે. હે ગૌતમ ! તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે તે શ્રાવકને આર્યપથિકી ક્રિયા લાગતી નથી, પણ સાંપરાવિકી કિયા લાગે છે अर्थ- पडसाना ४२६४ने स-ते, (अंतं करेड) मा ५६ द्वा। ध्यानुं ध्यान કરવામાં આવ્યું છે. શ્રમણોપાસક (શ્રાવક) ક્રિયાયુક્ત હેવ છે, તે કારણે સૂવકાર આ સૂત્રધારા શ્રમણોપાસકની વકતવ્યતાનું કથન કરે છે આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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